1 Dec 2008
शिवराज पाटिल और चिदम्बरम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हां अगर प्रणव मुखर्जी को गृहमंत्री बनाया जाता तो बात कुछ और थी परंतु सोनिया गांधी प्रणव मुखर्जी को महत्व नहीं देना चाहती , इसलिए उनको प्रधानमंत्री भी नहीं बनने दिया था।
मुम्बई के जिहादी आक्रमण के संदर्भ में चॉकलेटी चर्चाओं का फैशनेबल दौर जारी है। लेकिन कहीं भी इस समस्या के मूल पर चोट नहीं की जा रही है। जिसे देखकर आश्चर्य होता है। यह आक्रमण अलकायदा की ओर से घोषित इस्लामी आक्रमण था। ओसामा बिन लादेन और अल जवाहरी ने अगस्त 2006 में विश्व भर में प्रसारित अपने भाषण में स्पष्ट रूप से भारत पर हमला करने की घोषणा की थी।
इसके बाद अमेरिकी दूतावास ने इस चेतावनी को सब ओर प्रसारित भी किया था। अगस्त 2007 में गृह मंत्रालय में इस बात पर विशेष बैठक भी हुई थी। लेकिन उस समय मुस्लिम वोट बैंक को नाराज न करने के भय से मामले को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। गृह मंत्रालय के पास इस बात की पूरी सूचनाएं थी कि समुद्री मार्ग से भी आतंकवादी हमला कर सकते हैं । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। नौसेना , तटरक्षक और तटीय पुलिस इन तीनों स्तरों की चौकसी को लांघकर आतंकवादी मुंबई तक पहुंचे कैसे ? मुंबई मछुआरा संघ के अध्यक्ष ने आर.आर. पाटिल को संदिग्ध नौकाओं के बारे में जानकारी दी थी । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। इसलिए इस परिदृश्य में अपना वैचारिक प्रतिरोध सशक्त किए बिना अलकायदा के इस्लामी आक्रमण का मुकाबला नहीं किया जा सकता। इसमें देशभक्त समाज एकजुट होना होगा- हिन्दू , मुस्लिम सभी।
पर मूलतः यह हमला हमारे हिन्दू स्वरूप के कारण है , पर वैचारिक भ्रम के कारण भारत के सेकुलर बने हुए हैं। इस्लामी जिहाद को झेलते-झेलते हमें तीस साल से ज्यादा हो गए हैं पर क्या भारत में एक भी ऐसा बौद्धिक केन्द्र है जो इस घृणा के हमले का बौद्धिक विश्लेषण कर रहा हो ? इस आक्रमण के विभिन्न वैचारिक पहलू क्या है ? उनके प्रति भारत सरकार और गैर राजनीतिक संगठनों की नीति क्या है ? क्या हिन्दू संगठनों की भी आतंकवाद के प्रति कोई सुविचारित नीति बनी है ? हर आतंकवादी घटना पर तात्कालिक प्रतिक्रिया देना और उसके 24 घंटे बाद ही ‘ नच बलिए ’ की धुन पर पुलिस तथा सैनिक बलों का मनोबल गिराना हमारी आदत में शुमार हो गया है। सच यह है कि चार-चार बड़े युद्ध लड़ने और विजय पाने के बावजूद आज तक किसी सैनिक को भारत रत्न नहीं दिया गया।
दिल्ली में एक भी भव्य सैन्य विजय स्मारक नहीं है। सेना वेतन वृद्धि की मांग करते हुए थक जाती है। कारगिल विजय दिवस और भारत विजय दिवस (16 दिसंबर) मनाने बंद कर दिए गए हैं। सेना में अफसरों की कमी है। फिर हम किस ताकत के बल और सहारे पर शत्रु से निबटेंगे ? किसी तीसरे के विरुद्ध हम ‘ वयं पंचाधिकम शतम् ’ के भाव से ही खड़े रहें- यह बात मुंबई आक्रमण के संदर्भ में सभी दलों और विचार धाराओं के नेताओं को उठानी होगी।
जनता सेकुलरों की घृणा और दुर्भावना पर आधारित नीतियों व कार्यक्रमों से भी चिढ़ गई है। ये सेकुलर भारत और भारतीयता के सबसे बड़े शत्रु बनकर उभरे हैं जो हर आतंकी हमले को केवल सांप्रदायिक चश्मे से देखते हैं। तभी सर्वत्र यह भाव फैलता है कि ‘ भगवा के विरूद्ध जो पुलिस बोले यह वेद वाक्य समान विश्वस्त माना जाए और यदि बाकी के विरुद्ध पर्याप्त प्रमाण भी मिलें , तो उन पर शक किया जाए। इशरत जहां का मामला याद रखना चाहिए। उसके विरूद्ध गुजरात पुलिस ने कार्यवाही की तो तुरंत मीडिया में शोर मचा दिया गया कि एक बेगुनाह मुस्लिम महिला को गुजरात के दरिन्दों ने मार दिया। एक चैनल ने तो इशरतजहां के जनाजे का लाइव प्रसारण किया। जब लश्करे तोएबा ने स्वयं अपनी वेबसाइट पर इशरत को अपना कार्यकर्ता बताकर श्रद्धांजलि दी , तब सेकुलर मीडिया चुप हुई।
दूसरा उदाहरण कोयम्बटूर बम धमाके का है जिसमें 60 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 250 घायल हुए थे। उसके मुख्य अभियुक्त अब्दुल नसीर मदनी को जेल में पांच सितारा सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। केरल की सेकुलर वाममोर्चा सरकार ने बकायदा विधानसभा में मदनी को निर्दोष बताते हुए उसकी रिहाई के लिए प्रस्ताव पारित किया। निचली अदालत ने मदनी पर लगे आरोप प्रमाणित पाते हुए उसे अभियुक्त ठहराया , पर सरकार ने आगे कार्यवाही ही नहीं की और ढीली प्रस्तुति के कारण तकनीकी कारणों से जब मदनी को हाई कोर्ट ने रिहा किया तो केरल का समूचा मंत्रिमण्डल उसके सार्वजनिक स्वागत के लिए सड़क पर था।
जिस प्रकार से पिछले दिनों माले गांव की एक घटना को लेकर सरकार और मीडिया में सेकुलर जश्न मनाया जा रहा था , उससे जिहादी तत्वों का ही हौसला बढ़ा। जो हिन्दू गत तीन दशकों से लगातार जिहादी आतंक का शिकार होते आए और जिन्होंने कभी भी प्रतिकार व प्रतिशोध के स्वर नहीं उठाए , उन्हें सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक रिझाने के लिए ‘ आतंकवादी ’ घोषित कर दिया गया।
हर ओर जिस हिन्दू समाज और सभ्यता को वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश वाहक , प्रामाणिक एवं श्रेष्ठ बुद्धिमान माना जाता था , उस हिन्दू को इस सरकार और सेकुलर तंत्र ने जिहादी अलकायदा वालों के समकक्ष खड़ा कर क्या हासिल किया ? यह देश हिन्दू बहुसंख्यक होने के कारण ही इतना सहिष्णु , उदार और सर्वपंथ समादर की भावना वाला है। वरना यहां भी पड़ोस के इस्लामी देशों की तरह अल्पसंख्यक विरोधी मतांध सरकार होती। यदि भारत के इस हिन्दू चरित्र को आहत किया गया और वह विवश होकर प्रतिक्रिया में अपने जवाब जिहादी-रूप से देना उचित मानने लगा तो वह दिन भारत के लिए ही नहीं , विश्व-बहुलतावाद के लिए अत्यंत अमांगलिक होगा। मुंबई के जिहादी आक्रमण के परिप्रेक्ष्य में वैचारिक , पांथिक एवं राजनीतिक भेदाभेद से ऊपर उठते हुए एकजुटता प्रकट करने की तीव्र आवश्यकता है। पुनः कारगिल-युद्ध के समय प्रकट हुई असाधारण देशभक्ति की लहर के बल पर ही जिहादी तत्वों को परास्त किया जा सकता है। पर उसके लिए आवश्यक होगा कि वोट बैंक की राजनीति का दाम न छोड़ा जाए।
बाटला हाउस प्रकरण में जिस प्रकार बहादुर पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को उनकी शहादत के बाद भी जलील किया गया , वह सुरक्षा सैनिकों का मनोबल गिराने वाला ही कहा जाएगा। मुंबई में एटीएस प्रमुख हेमन्त करकरे , विजय सलस्कर और अशोक कामटे की शहादत ने हर देशभक्त की आंखे नम कर दीं और सम्मान से सर झुका दिया। अगर इन्हें शहादत के बावजूद सेकुलरों के शक और आघातों का शिकार होना है तो कोई भला क्यों सुरक्षा बलों में जाएगा ? पुलिस ही हों , किसी भी क्षेत्र में नौकरी के साथ-साथ प्रतिष्ठा का भी महत्व होता है।
सेकुलर तत्व नक्सली-माओवादियों के मानवाधिकारों के लिए तो आवाज़ उठाते हैं , पर कभी उन्होंने ‘ कम वेतन और अधिकतम जोखिम ’ की जिन्दगी जीने वाले पुलिसकर्मियों के मानवाधिकारों को कोई महत्व नहीं दिया । क्यो ? इस सेकुलर तंत्र में भारत में सुरक्षाकर्मी सर्वाधिक आहत और अपमानित हुए हैं। फलतः जिहादी बर्बरता क्यों न फले-फूलेगी ? 13 दिसंबर के हमले में शहीद सुरक्षाकर्मियों के परिवारजन ने वीरता के अलंकरण सरकार को लौटा दिए , अफजल की फांसी टालने के मामले पर सरकार कठघरे में खड़ी हुई , कांची के शंकराचार्य को दीवाली की रात गिरफ्तार किया गया , केरल के मजिस्ट्रेट का दिल्ली के इमाम के खिलाफ गैर जमानती वारंट तामील नहीं किया गया , कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कंधमाल में स्वामी लक्ष्मणानंद जी की हत्या की गयी , जम्मू के रघुनाथ मंदिर , काशी के संकटमोचन मंदिर तथा गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर पर आतंकवादी जिहादी हमले हुए , फिर भी सरकार वे सेकुलरों की सहानुभूति कभी हिन्दुओं को नहीं मिली।
अब समय है कि देश जिहादी आक्रमण के विरूद्ध एकजुट स्वर में बोले। हमारे देवता और विचारधाराएं भारत से बड़ी नहीं हो सकतीं। सेकुलरवाद का हिन्दू विरोधी चरित्र राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए घातक है। आतंकवाद के विरुद्ध मुंबई धमाके राष्ट्रीय एकता का भाव जाग्रत करने वाले सिद्ध होने चाहिए।
मुम्बई के जिहादी आक्रमण के संदर्भ में चॉकलेटी चर्चाओं का फैशनेबल दौर जारी है। लेकिन कहीं भी इस समस्या के मूल पर चोट नहीं की जा रही है। जिसे देखकर आश्चर्य होता है। यह आक्रमण अलकायदा की ओर से घोषित इस्लामी आक्रमण था। ओसामा बिन लादेन और अल जवाहरी ने अगस्त 2006 में विश्व भर में प्रसारित अपने भाषण में स्पष्ट रूप से भारत पर हमला करने की घोषणा की थी।
इसके बाद अमेरिकी दूतावास ने इस चेतावनी को सब ओर प्रसारित भी किया था। अगस्त 2007 में गृह मंत्रालय में इस बात पर विशेष बैठक भी हुई थी। लेकिन उस समय मुस्लिम वोट बैंक को नाराज न करने के भय से मामले को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। गृह मंत्रालय के पास इस बात की पूरी सूचनाएं थी कि समुद्री मार्ग से भी आतंकवादी हमला कर सकते हैं । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। नौसेना , तटरक्षक और तटीय पुलिस इन तीनों स्तरों की चौकसी को लांघकर आतंकवादी मुंबई तक पहुंचे कैसे ? मुंबई मछुआरा संघ के अध्यक्ष ने आर.आर. पाटिल को संदिग्ध नौकाओं के बारे में जानकारी दी थी । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। इसलिए इस परिदृश्य में अपना वैचारिक प्रतिरोध सशक्त किए बिना अलकायदा के इस्लामी आक्रमण का मुकाबला नहीं किया जा सकता। इसमें देशभक्त समाज एकजुट होना होगा- हिन्दू , मुस्लिम सभी।
पर मूलतः यह हमला हमारे हिन्दू स्वरूप के कारण है , पर वैचारिक भ्रम के कारण भारत के सेकुलर बने हुए हैं। इस्लामी जिहाद को झेलते-झेलते हमें तीस साल से ज्यादा हो गए हैं पर क्या भारत में एक भी ऐसा बौद्धिक केन्द्र है जो इस घृणा के हमले का बौद्धिक विश्लेषण कर रहा हो ? इस आक्रमण के विभिन्न वैचारिक पहलू क्या है ? उनके प्रति भारत सरकार और गैर राजनीतिक संगठनों की नीति क्या है ? क्या हिन्दू संगठनों की भी आतंकवाद के प्रति कोई सुविचारित नीति बनी है ? हर आतंकवादी घटना पर तात्कालिक प्रतिक्रिया देना और उसके 24 घंटे बाद ही ‘ नच बलिए ’ की धुन पर पुलिस तथा सैनिक बलों का मनोबल गिराना हमारी आदत में शुमार हो गया है। सच यह है कि चार-चार बड़े युद्ध लड़ने और विजय पाने के बावजूद आज तक किसी सैनिक को भारत रत्न नहीं दिया गया।
दिल्ली में एक भी भव्य सैन्य विजय स्मारक नहीं है। सेना वेतन वृद्धि की मांग करते हुए थक जाती है। कारगिल विजय दिवस और भारत विजय दिवस (16 दिसंबर) मनाने बंद कर दिए गए हैं। सेना में अफसरों की कमी है। फिर हम किस ताकत के बल और सहारे पर शत्रु से निबटेंगे ? किसी तीसरे के विरुद्ध हम ‘ वयं पंचाधिकम शतम् ’ के भाव से ही खड़े रहें- यह बात मुंबई आक्रमण के संदर्भ में सभी दलों और विचार धाराओं के नेताओं को उठानी होगी।
जनता सेकुलरों की घृणा और दुर्भावना पर आधारित नीतियों व कार्यक्रमों से भी चिढ़ गई है। ये सेकुलर भारत और भारतीयता के सबसे बड़े शत्रु बनकर उभरे हैं जो हर आतंकी हमले को केवल सांप्रदायिक चश्मे से देखते हैं। तभी सर्वत्र यह भाव फैलता है कि ‘ भगवा के विरूद्ध जो पुलिस बोले यह वेद वाक्य समान विश्वस्त माना जाए और यदि बाकी के विरुद्ध पर्याप्त प्रमाण भी मिलें , तो उन पर शक किया जाए। इशरत जहां का मामला याद रखना चाहिए। उसके विरूद्ध गुजरात पुलिस ने कार्यवाही की तो तुरंत मीडिया में शोर मचा दिया गया कि एक बेगुनाह मुस्लिम महिला को गुजरात के दरिन्दों ने मार दिया। एक चैनल ने तो इशरतजहां के जनाजे का लाइव प्रसारण किया। जब लश्करे तोएबा ने स्वयं अपनी वेबसाइट पर इशरत को अपना कार्यकर्ता बताकर श्रद्धांजलि दी , तब सेकुलर मीडिया चुप हुई।
दूसरा उदाहरण कोयम्बटूर बम धमाके का है जिसमें 60 से ज्यादा लोग मारे गए थे और 250 घायल हुए थे। उसके मुख्य अभियुक्त अब्दुल नसीर मदनी को जेल में पांच सितारा सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। केरल की सेकुलर वाममोर्चा सरकार ने बकायदा विधानसभा में मदनी को निर्दोष बताते हुए उसकी रिहाई के लिए प्रस्ताव पारित किया। निचली अदालत ने मदनी पर लगे आरोप प्रमाणित पाते हुए उसे अभियुक्त ठहराया , पर सरकार ने आगे कार्यवाही ही नहीं की और ढीली प्रस्तुति के कारण तकनीकी कारणों से जब मदनी को हाई कोर्ट ने रिहा किया तो केरल का समूचा मंत्रिमण्डल उसके सार्वजनिक स्वागत के लिए सड़क पर था।
जिस प्रकार से पिछले दिनों माले गांव की एक घटना को लेकर सरकार और मीडिया में सेकुलर जश्न मनाया जा रहा था , उससे जिहादी तत्वों का ही हौसला बढ़ा। जो हिन्दू गत तीन दशकों से लगातार जिहादी आतंक का शिकार होते आए और जिन्होंने कभी भी प्रतिकार व प्रतिशोध के स्वर नहीं उठाए , उन्हें सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक रिझाने के लिए ‘ आतंकवादी ’ घोषित कर दिया गया।
हर ओर जिस हिन्दू समाज और सभ्यता को वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश वाहक , प्रामाणिक एवं श्रेष्ठ बुद्धिमान माना जाता था , उस हिन्दू को इस सरकार और सेकुलर तंत्र ने जिहादी अलकायदा वालों के समकक्ष खड़ा कर क्या हासिल किया ? यह देश हिन्दू बहुसंख्यक होने के कारण ही इतना सहिष्णु , उदार और सर्वपंथ समादर की भावना वाला है। वरना यहां भी पड़ोस के इस्लामी देशों की तरह अल्पसंख्यक विरोधी मतांध सरकार होती। यदि भारत के इस हिन्दू चरित्र को आहत किया गया और वह विवश होकर प्रतिक्रिया में अपने जवाब जिहादी-रूप से देना उचित मानने लगा तो वह दिन भारत के लिए ही नहीं , विश्व-बहुलतावाद के लिए अत्यंत अमांगलिक होगा। मुंबई के जिहादी आक्रमण के परिप्रेक्ष्य में वैचारिक , पांथिक एवं राजनीतिक भेदाभेद से ऊपर उठते हुए एकजुटता प्रकट करने की तीव्र आवश्यकता है। पुनः कारगिल-युद्ध के समय प्रकट हुई असाधारण देशभक्ति की लहर के बल पर ही जिहादी तत्वों को परास्त किया जा सकता है। पर उसके लिए आवश्यक होगा कि वोट बैंक की राजनीति का दाम न छोड़ा जाए।
बाटला हाउस प्रकरण में जिस प्रकार बहादुर पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को उनकी शहादत के बाद भी जलील किया गया , वह सुरक्षा सैनिकों का मनोबल गिराने वाला ही कहा जाएगा। मुंबई में एटीएस प्रमुख हेमन्त करकरे , विजय सलस्कर और अशोक कामटे की शहादत ने हर देशभक्त की आंखे नम कर दीं और सम्मान से सर झुका दिया। अगर इन्हें शहादत के बावजूद सेकुलरों के शक और आघातों का शिकार होना है तो कोई भला क्यों सुरक्षा बलों में जाएगा ? पुलिस ही हों , किसी भी क्षेत्र में नौकरी के साथ-साथ प्रतिष्ठा का भी महत्व होता है।
सेकुलर तत्व नक्सली-माओवादियों के मानवाधिकारों के लिए तो आवाज़ उठाते हैं , पर कभी उन्होंने ‘ कम वेतन और अधिकतम जोखिम ’ की जिन्दगी जीने वाले पुलिसकर्मियों के मानवाधिकारों को कोई महत्व नहीं दिया । क्यो ? इस सेकुलर तंत्र में भारत में सुरक्षाकर्मी सर्वाधिक आहत और अपमानित हुए हैं। फलतः जिहादी बर्बरता क्यों न फले-फूलेगी ? 13 दिसंबर के हमले में शहीद सुरक्षाकर्मियों के परिवारजन ने वीरता के अलंकरण सरकार को लौटा दिए , अफजल की फांसी टालने के मामले पर सरकार कठघरे में खड़ी हुई , कांची के शंकराचार्य को दीवाली की रात गिरफ्तार किया गया , केरल के मजिस्ट्रेट का दिल्ली के इमाम के खिलाफ गैर जमानती वारंट तामील नहीं किया गया , कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कंधमाल में स्वामी लक्ष्मणानंद जी की हत्या की गयी , जम्मू के रघुनाथ मंदिर , काशी के संकटमोचन मंदिर तथा गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर पर आतंकवादी जिहादी हमले हुए , फिर भी सरकार वे सेकुलरों की सहानुभूति कभी हिन्दुओं को नहीं मिली।
अब समय है कि देश जिहादी आक्रमण के विरूद्ध एकजुट स्वर में बोले। हमारे देवता और विचारधाराएं भारत से बड़ी नहीं हो सकतीं। सेकुलरवाद का हिन्दू विरोधी चरित्र राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के लिए घातक है। आतंकवाद के विरुद्ध मुंबई धमाके राष्ट्रीय एकता का भाव जाग्रत करने वाले सिद्ध होने चाहिए।
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