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Friday, January 30, 2009

सशक्त दिल्ली तो अशक्त आतंकिस्तान


सौ करोड़ वीर नागरिकों का देश मुट्ठी भर पिलपिले नेताओं के कारण लहूलुहान हो रहा है लेकिन आतंकवादियों के खिलाफ हमले का मन नहीं बना पा रहा है : तरूण विजय

पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद समाप्त करने के लिए जो लोग ‘युद्ध होना चाहिए या नहीं’ जैसी बहसों में उलझते हैं, वे विषय भ्रमित करते हैं। मूल मुद्दा पाकिस्तान से युद्ध नहीं बल्कि आतंकवाद समाप्त करने का है। दुनिया का कोई देश इस्लामी आतंकवाद का इतना अधिक शिकार नहीं हुआ है, जितना भारत हुआ है। केवल जम्मू कश्मीर में ही गत दस वर्षों में दस हजार भारतीय (अधिकांश हिन्दू) और शेष भारत की आतंकवाद पीड़ित संख्या भी मिलाएं तो यह आंकड़ा 60 हजार पार कर जाता है। कितने और भारतीय मरने चाहिए कि हम इस वीभत्स आतंकवाद के अंत हेतु कोई निर्णायक रणनीति बनाने व उस पर अमल करने का मन बनाएंगे?आतंकवादी कहीं भी हो, उसका अंत करने के लिए हमें मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए। सौ करोड़ वीर नागरिकों का देश मुठ्ठी भर पिलपिले व रीढ़हीन नेताओं के कारण लहूलुहान हो रहा है लेकिन आतंकवादियों पर हमले का मन नहीं बना पा रहा है। अंग्रेजी में कहावत है कि जो युद्ध से डरते हैं, युद्ध उनकी चौखट पर दस्तक देता है। भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत के चार युद्ध हुए हैं– चारों युद्ध न तो भारत ने मांगे, न हमारी उत्तेजक कार्रवाइयों का परिणाम थे। चारों बार युद्ध पाकिस्तान ने धोखे और छल से या तो हमारी भूमि हथियाने के लिए किए या फिर प्रतिशोध के लिए किए। पाक गत बीस वर्षों से कम सघनता का जो आतंकवादी युद्ध भारत के विरूद्ध छेड़े हुए है, उनकी संख्या चार युद्धों में वीरगति प्राप्त सैनिकों से भी अधिक है। हम अपने घर में ही दुश्मन से युद्ध लड़ते हुए अपनी वेदना का उचित समाधान ढ़ूंढ़ने में भी हिचक रहे हैं– इससे बढ़कर आत्मदैन्य एवं स्वयं की शक्ति पर अविश्वास और क्या होगा? इस आतंकवाद निर्मूलन युद्ध के दो आयाम होने चाहिए– एक बाहरी और दूसरा भीतरी। बाहरी आयाम में पाकिस्तान स्थित गढ़ों एवं उसकी शक्ति के स्रोतों को परोक्ष गुरिल्ला हमलों से समाप्त करना होगा। मुंबई में पकडा़ गया आतंकवादी कसाब फरीदकोट के जिस गांव से आया है– उस पूरे गांव को कसाब के कुकृत्य की सजा मिलनी चाहिए। इसके लिए अमेरिका पर निर्भर रहना मूर्खता होगी। इसके साथ ही भारत को पाकिस्तान से सिंध व पख्तूनिस्तान अलग करने के स्थानीय आंदोलनों को सहारा देना चाहिए। कमजोर एवं भीतरी द्वंद्वों में उलझा पाकिस्तान हमारी नीति का दीर्घकालिक अंग होना चाहिए। विश्व भर में इस्लामी आतंकवाद की घटनाओं से पीड़ित व्यक्ति की तथ्यात्मक सचित्र प्रदर्शनियां एवं उन पर बने वित्तचित्र प्रदर्शित किए जाने चाहिए ताकि विश्व जनमत हमारी वेदना को समझ कर हमारा साथ दे। यह मानना कि यदि हमने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गढा़ें पर हमला किया तो वह परमाणु बम छोड़ सकता है– कायरता की हद है। एक तो पाकिस्तान के परमाणु जखीरे पर अमरीकी नियंत्रण है, दूसरे वह जानता है कि ऐसे कदम का परिणाम पूरे पाकिस्तान का महाविनाश होगा। इसलिए पाकिस्तान के केवल ‘लो इन्टेन्सिटी वार’ यानी ‘कम सघनता के गुरिल्ला युद्ध’ की नीति से निबटा जाना चाहिए।इस नीति का दूसरा आयाम घरेलू आतंकवादी रक्षा कवचों को पूर्णत: निष्प्रभावी बनाने से जुडा़ है। ये आतंकवादी कहीं से भी आएं अथवा भारत के भीतर ही कुछ देशद्रोही पैदा करें, इनको स्थानीय मदद एवं शरण मिले बिना उनके षडयंत्र सफल नहीं हो सकते। बौद्धिक स्तर पर इन तत्वों को यह मदद यदि मतांध सेकुलर जमात अपने पत्रों व चैनलों द्वारा देती है तो संरचनात्मक मदद देने वाले केंद्र कट्टरपंथी जिहादी संगठनों द्वारा संचालित होते हैं। विडंबना यह है कि भारत पाकिस्तान को सूची सौंपकर अपराधी आतंकवादी सौंपने की मांग करता है लेकिन अपने ही घर में छुपे हुए जिहादी बर्बरों के विरूद्ध कार्यवाई करने से हिचकता है। यह एक छद्म एवं अभारतीय सेकुलरवाद के अराष्ट्रीय चरित्र के कारण होता है। दुनिया का सर्वाधिक आतंकवाद पीड़ित देश होने के बावजूद भारत के सेकुलर राजनेता और पत्रकार पांच करोड़ से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठियों को अपने यहां मेहमान बनाए हुए हैं। अफजल को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बावजूद फांसी में ढ़िलाई बरती जा रही है और प्रांतीय सरकारों जैसे गुजरात एवं पूर्ववर्ती राजस्थान सरकार को कड़े आतंकवाद निरोधक कानून बनाने की अनुमति नहीं दी गई। विश्व का ऐसा कौन सा देश होगा जो जिहादी मानसिकता के घोर घृणावादियों का शिकार पांच लाख देशभक्त नागरिकों को तम्बुओं में शरणार्थी के नाते रहते देखता रहे और बेचैन न हो? जब तक देश में ऐसे सेकुलरवाद का चलन रहेगा, आतंकवाद के निर्मूलन की कोई योजना सफल नहीं हो सकती।गत 26 नवंबर को मुंबई पर हमले के बाद पाकिस्तान के अखबारों ने लिखा कि इन हमलों के पीछे अमरीकी–यहूदी और हिंदू संगठनों का हाथ है ताकि पाकिस्तान और मुसलमानों को बदनाम किया जा सके। कराची से प्रकाशित अखबारों ने 27 नवंबर के दिन मुंबई पर जिहादी हमले की खबर देते हुए मुखपृष्ठ पर बाला साहेब ठाकरे और लालकृष्ण आडवाणी के चित्र छापे और उनके नीचे लिखा– ‘हिंदुस्तान के असली दहशतगर्द’। लेकिन जब ठीक ऐसी ही बातें भारत के सेकुलर अखबार और खासकर उर्दू दैनिक छापें तो आप इसे क्या कहेंगे? लखनऊ के उर्दू दैनिक ने छापा कि मुंबई में 26 नवंबर को जिन लोगों ने एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे को गोलियां मारीं, वे आपस में मराठी में बोल रहे थे। अब पाकिस्तान में तो मराठी बोली नहीं जाती, इसलिए जांच होनी चाहिए कि वे लोग कौन थे? एक लेखक ने तो मुंबई हमले के लिए आडवाणी को जिम्मेदार ठहरा दिया। इस प्रकार के तत्व ही अब्दुल रहमान अंतुले जैसे लोगों को कुछ भी बोलने का बल देते हैं। यही लोग बाटला हाउस में इंस्पेक्टर शर्मा की शहादत का अपमान करते हैं, मुबई हमलों की जांच में भ्रम पैदा करते हैं और पाकिस्तान का मनोबल बढा़ते हैं। ऐसे देशविरोधी सेकुलरवाद को निर्मूल करना भी उतना ही जरूरी है, जितना पाकिस्तान में छिपे आतंकी अड्डे नष्ट करना।

1 comment:

सुशांत सिंघल said...

हम भारतीय ढोंग बहुत करते हैं। दिन रात गांधी जी की पूजा करते हैं पर उनके आदर्शों से हमारा कोई लेना-देना नहीं है। अगर आज पूज्य गांधी जी हमारे बीच में होते तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर उनका दृष्टिकोण क्या होता ? यही न कि कोई आपके एक शहर पर हमला करे तो एक शहर और उसके आगे कर दो, वह शर्मिन्दा हो जायेगा, उसका ह्रदय परिवर्तन हो जायेगा । वह आपकी संसद पर हमला करे तो राष्ट्रपति भवन भी उसके आगे कर दो।

अरे भाइयों, गांधी, ईसा, बुद्ध, महावीर की इस अहिंसक भूमि पर जिस किसी को देखो, पाक को सबक सिखाने की बातें कर रहा है। अरे, जीतना है तो पाक को प्रेम से जीतो। वह अगर काश्मीर के पीछे पड़ा है तो उसे दिल्ली क्यों नहीं सौंप दी जाती!!!!!! गांधी के देश में एक भी गांधीवादी नहीं ! ऐसे कैसे महान विचार थे गांधी के जो उनके समय में भी अप्रासंगिक थे और आज भी हैं!