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Friday, January 30, 2009

चुनाव के अंधेरे में उपजते हथियार

चुनाव के अंधेरे में उपजते हथियार
20 Nov 2008

अदालत में दिए गए साध्वी प्रज्ञा के बयान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या एक महिला होने के नाते साध्वी प्रज्ञा को पुलिस हिरासत में अपने सम्मान की सुरक्षा का कोई अधिकार नहीं था। जेल में साध्वी पर भीषण अत्याचार किए गए। उनसे पूछा गया कि ‘‘ क्या वे कुंवारी ‘ हैं ?’’ उन्हें पीटा गया। उनके पांव , तलवे , हथेलियों व तलवों पर चोटें दी गईं। उन्हें नारको टेस्ट से गुजारा गया। साध्वी ने अपने बयान में कहा कि कई बार उनके मन में आया कि वे आत्महत्या कर लें।

इस घटना पर राष्ट्रीय महिला आयोग चुप रहा। यह वही महिला आयोग है जो राखी सावंत जैसी आइटम गर्ल के लिए तुरंत सक्रिय हुआ था। राखी सावंत के साथ महिला आयोग की अधिकारियों ने फोटो खिंचवाई थी और इन सबसे आइटम गर्ल का काम - काज ही बढ़ा।

कश्मीर में आशिया अंदरावी कट्टर इस्लामी संगठन दुख्तराने मिल्लत की अध्यक्ष हैं। उन पर अमेरिका ने आरोप लगाया था कि श्रीनगर के एक बम धमाके में उनके संगठन का हाथ था। जिसमें एक पत्रकार मारा गया था। भारतीय गुप्तचर एजंसियों ने उन पर हवाला से पैसा लेकर जिहादी आतंकवादियों को देने का आरोप लगाया और पोटा के अंतर्गत जेल में डाला। देश के खिलाफ और आतंकवादियों के समर्थन में काम करने वाली इस महिला को जेल में सब सुविधाएं दी गईं और बाद में छोड़ भी दिया गया।

साध्वी प्रज्ञा पर अभी तक कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ है। वह देश के खिलाफ काम नहीं करतीं। साध्वी धार्मिक महिला हैं। फिर भी उन पर इतना अत्याचार क्यों ?

हिन्दू समाज स्वभावतः कभी धर्म के आधार पर आतंकवाद करने वाली गतिविधियों का समर्थन नहीं कर सकता। नाथू राम गोडसे ने हिन्दू समाज का जितना अहित किया उसका कोई लेखा - जोखा नहीं कर सका है। पर गांधी विश्व वन्द्यः माने गए , आज वे दुनिया में भारत की श्रेष्ठतम पहचान हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लाखों स्वयंसेवक प्रतिदिन पढ़े जाने वाले प्रातः स्मरण में सुबह गांधी जी का नाम लेते हैं। जिन इस्लामी देशों में आतंकवाद पनप रहा है वहां की दुर्दशा हिन्दू समाज देखता व समझता है। आज दुनिया भर में हिन्दू उद्योग , व्यापार , प्रौद्योगिकी विज्ञान कम्यूटर इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में शिखर पर दिखते हैं।


यह विचार स्वातंत्र्य , सर्व पंथ समभाव , मैत्री व
करूणा के स्वभाव से पैदा वातावरण में ही संभव हो सकता था। अजीम प्रेम जी व शाहरुख खान भी अगर शिखर पर हैं तो उसका कारण बहुसंख्यक हिन्दुओं के औदार्य और सर्वसमावेशी सभ्यता के प्रवाह से पैदा वातावरण है। जहां उपासना पद्धति के आधार पर भेदभाव मान्य नहीं। पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी आतंकवाद समर्थक समाज में अब्दुल कादिर खान जैसे ही लोग हो सकते हैं जिन पर परमाणु चोरी का आरोप लगता है। इस्लामी देश सद्दाम हुसैन जैसे तानाशाह , सऊदी शाह जैसे विलासी या ओसामा जैसे आतंकवादी ही पैदा कर रहे हैं।

लेकिन जब चारों ओर से हिन्दू निराश और हताश होकर कोने में धकेला हुआ महसूस करने लगे और पिछले 3 दशकों में हो रहे जिहादी हमलों के साथ - साथ सेकुलर मीडिया और सरकार के एक तरफा द्वेषपूर्ण हमले भी जुड़ जाएं तो यह बहुत अस्वाभाविक नहीं माना जाना चाहिए कि कुछ ऐसे योजक तो जरूर पैदा होंगे जो अपने समाज की रक्षा के लिए प्रतिक्रिया में विस्फोटक काम कर बैठें। जब तक सेकुलर और जिहादी अन्याय व अंधा दमन हिन्दुओं पर होगा तब तक ऐसे तत्वों को रोका जाना असंभव है। समाज के इन तत्वों पर किसी संगठन का अंकुश नहीं रहता। ‘ ए वेडनस्डे ’ फिल्म में नसीरुद्दीन शाह कानूनी काम नहीं करते , पर जनता और देशभक्त पुलिसकर्मियों की सहानुभूति जरूर हासिल कर लेते हैं। क्यों ? असफल सरकार जनता को कानून हाथ में लेने पर बाध्य करती है।

गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार कश्मीर घाटी से कोयम्बटूर तक इस्लामी जिहादियों के विभिन्न हमलों में 60,000 से अधिक भारतीय मारे गए जिनमें से अंधिकांशतः हिन्दू थे। राजौरी , पुंछ व डोडा जैसे इलाकों में बसों से यात्रियों को उतारकर हिन्दुओं को अलग खड़ा होने के लिए कहा गया फिर उन्हें गोली मार दी गई। घाटी से 3,50,000 से अधिक हिन्दुओं को बेघर होकर अपने ही देश के शरणार्थी बनने पर विवश किया गया। घर बाग - बगीचे छोड़कर अपने परिवार की स्त्रियों की इज्जत गंवाकर ढाई - ढाई साल के बच्चों को जिहादियों द्वारा अपनी आंखों के सामने मारे जाते देखने के बाद शरणार्थी बनना क्या होता है यह सिर्फ शरणार्थी बनकर ही समझा जा सकता है। मामला यही तक नहीं थमा। रघुनाथ मंदिर , संकट मोचन मंदिर , अक्षरधाम मंदिर जैसे भयानक विस्फोट भी हुए और फिर जयपुर , दिल्ली इत्यादि के बम धमाके।


इस जिहाद के स्पष्टतः घोषित तौर पर हिन्दू केन्द्रित आघातों के बावजूद पिछले 30 वर्षों के एक तरफा जिहादी युद्ध की प्रतिक्रिया में एक भी हिन्दू आतंकवादी पैदा नहीं हुआ जो यह कहता कि इन कायर और मतांध जिहादियों को हम अपनी ताकत से ठीक करेंगे। इसका एक कारण यह भी है कि हिन्दू भारत को सिर्फ नदियों , पहाड़ों व नागरिकों का समुच्च नहीं। बल्कि साक्षात जगत जननी माता मानकर इस देश पर और यहां की जमीन पर अपना स्वाभाविक अधिकार मानता है। वह आमने - सामने की उस लड़ाई में धर्म से लड़ते हुए तो विजय प्राप्त कर सकता है जैसे 16 दिसंबर 1971 में ढाका में या कारगिल युद्ध जीतकर उसने दिखा दिया। लेकिन उसका स्वभाव उस जिहादी या नक्सली युद्ध को वीरता नहीं मानता जो यहां विदेशों से आयातित हुआ है। इस सैन्य परंपरा के वीरभाव में हर देशभक्त मुसलमान , ईसाई व सिख भी शामिल है। रात के अंधेरे में दरवाजा खुलवाकर निर्दोष स्त्रियों और बच्चों को मारना और फिर उसे धर्म की विजय घोषित करना भारत के स्वभाव का कभी हिस्सा नहीं रहा। वह भगत सिंह की परंपरा का समर्थक है जिसने आतंकवाद का सहारा नहीं लिया था बल्कि विदेशी जुल्मी विचारधारा के अन्याय के खिलाफ युद्ध घोषित कर सैन्य कार्यवाही द्वारा मारे जाने की अपील की थी। वह भागा नहीं। उसने बचने की कोशिश नहीं की।

केवल चुनावी वोट बैंक संतुलन और जिहादी तुष्टीकरण के लिए वर्तमान सरकार ने इस हजारों साल पुरानी परंपरा पर हिन्दू आतंकवाद शब्द प्रचलित कर धब्बा लगाने की जो कोशिश की है वह अक्षम्य और गर्हित है। सेकुलर वर्ग अपनी चुनावी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इस हद तक गिर जाएगा यह अभी तक उस हिन्दू के लिए अकल्पनीय था , जिसने जन्म से मृत्यु तक के कर्मकाण्ड वाले मंत्रों में ‘ सर्व भवन्तु सुखिनः ’ और ‘ सर्व मंगल मांगल्ये ’ की कामना कर स्वयं को पृथ्वी पर सबसे विशिष्ट जीवन पद्धति सिद्ध किया। जो यह मानकर चलता है कि कोई भी , किसी भी पथ का अनुगामी होकर अपने ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। यही विश्वास हमें सामी पंथों से भिन्न और विशिष्ट बनाता है।

जिन जिहादी संगठनों ने हजारों स्वदेशी बांधवों को कुरान की आयतें उद्धृत करते हुए तथा अपने संगठनों के नाम ‘ लश्कर ए तैयबा ’, ‘ जैश ए मोहम्मद ’ और ‘ हिज्बुल मुजाहिदीन ’ रखते हुए मार डाला उनके बारे में उल्लेख करते समय सेकुलर मीडिया व सरकार कहती है कि इन्हें इस्लामी आतंकवादी मत कहो। लेकिन सेकुलर मीडिया व सरकार इतनी गहनता से हिन्दू विद्वेष रखती है कि एक साध्वी की गिरफ्तारी होते ही बहुत उत्साह व उत्सवी उद्वेग के साथ ‘ हिन्दू आतंकवादी ’, ‘ भगवा जिहादी ’, ‘ सेफरेन टेररिज़म ’ जैसे शब्द शीर्षकों से लेकर समाचार कथ्यों और संपादकीयों तक इस्तेमाल किए गए , फलस्वरूप आतंकवादियों को तुरंत राहत मिली। क्योंकि जिस समय बाटला हाउस और जामिया के जिहादियों को दिए जा रहे सेकुलर कवच पर जनता में गुस्सा फैल रहा था , गुवाहाटी से लेकर कश्मीर तक हो रहे बम विस्फोटों से केन्द्र सरकार और उसका बहादुर गृहमंत्रालय , हिन्दू संगठनों एवं केसरिया पार्टियों के तीव्र निशाने पर आह्त हो रहा था , उस समय अचानक सरकार ‘ हिन्दू आतंकवादियों ’ के खिलाफ रण में उतर आने की बहादुरी दिखाने लगी तो बाकी सारे मामले सुर्खियों से गायब हो गए।

हुआ क्या ? बिना कोई सिद्ध किए जा सकने वाले प्रमाण के बावजूद एक हिन्दू संन्यासिनी की गिरफ्तारी की जाती है , जम्मू के एक अन्य संन्यासी को पुलिस के निशाने पर लिया जाता है , बीजेपी नेताओं के निर्दोष चित्रों को अपराध कर्म में लिप्त प्रमाण के रूप में छापा जाता है और एक भी प्रमाण दिए बिना हिन्दू संगठनों पर प्रतिबंध की आवाजें उठाई जाती हैं तो परिणाम स्वरूप सरकार को लगता है कि उसने एक ही साथ आक्रामक हिन्दू परिवार को रक्षात्मक बनाकर आरोप लगाने की स्थिति से स्पष्टीकरण देने वाली स्थिति में ला खड़ा किया है। जिहादी हमलों की खबरें भी चर्चा से बाहर हो गयीं।

चुनाव सिर पर हों , सरकार आतंकवादी हमलों से त्रस्त हो , चारों ओर सरकार पर शहीद मोहन चन्द शर्मा जैसे पुलिस अधिकारियों के अपमान के तीव्र आरोप लग रहे हों ऐसी स्थिति में डूबते को जहाज के सहारे के समान ‘ हिन्दू आतंकवाद ’ का शोशा हाथ में लग जाए तो रक्षात्मक सरकार के लिए इससे बढ़कर और क्या सहारा हो सकता है ?
साध्वी प्रज्ञा नारको परीक्षा में भी निर्दोष निकली हैं। आम हिन्दुओं में साध्वी के लिए उपजा सम्मान व समर्थन उन सेकुलरों के लिए खतरे की घंटी है जो जिहादी तुष्टीकरण व वोट बैंक के लिए हिन्दुओं को अपना स्वभाव बदलने पर विवश कर रहे हैं। अंधेरे की लड़ाई अंधेरे से नहीं लड़ी जा सकती। हिन्दुओं पर आतंकवादी लेबल चिपकाकर सिर्फ ओसामा बिन लादेन की मदद हो सकती है भारत की रक्षा नहीं।

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