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Friday, January 30, 2009

हिन्दू पाखंड से लड़ेंगे तो धर्म बचेगा

हिन्दू पाखंड से लड़ेंगे तो धर्म बचेगा

6 Oct 2008

उड़ीसा में जो कुछ भी ईसाई चर्च और ननों पर आक्रमण के रूप में दिख रहा है उससे वे सामान्य हिन्दू भी दुखी हैं जो अन्यथा ईसाइयों के छल, बल और कपट से किए जाने वाले धर्मान्तरण के विरोध में तीक्ष्ण मत प्रकट करते हैं।

हिन्दू धर्म विश्व में सर्वाधिक शालीन, भद्र, सभ्य और ‘ वसुधैव कुटुम्बकम् ’ की भावना प्रसारित करने वाली जीवन पद्धति है जो किसी संप्रदाय या पंथ से व्याख्यायित नहीं हो सकती। सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने हिन्दुत्व संबंधी फैसले में स्पष्ट कहा कि हिन्दू धर्म सम्प्रदाय नहीं बल्कि संपूर्ण वैश्विक दृष्टि रखने वाली जीवन पद्धति है। इस जीवन पद्धति के आधुनिक उद्गाता महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, शाहू जी महाराज, लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक, श्री अरविंद, महात्मा गांधी, डॉ. हेडगेवार, वीर सावरकर प्रभृति जननायक हुए। उन्होंने उस समय हिन्दू समाज की दुर्बलताओं, असंगठन और पाखण्ड पर चोट की। तेजस्वी-ओजस्वी वीर एवं पराक्रमी हिन्दू को खड़ा करने की कोशिश की।

उन महापुरुषों को आज के नेताओं से छोटा या कम बुद्धिमान नहीं कहा जा सकता। महात्मा गांधी ने दुनिया में एक आदर्श हिन्दू का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया कि आज सारी दुनिया भारत को महात्मा गांधी के देश के नाम से जानती है। डॉ. हेडगेवार ने भारत के हज़ारों साल के इतिहास में पहली बार क्रांतिधर्मा समाज परिवर्तन की ऐसी प्रचारक परम्परा प्रारम्भ की जिसने देश के मूल चरित्र और स्वभाव की रक्षा हेतु अभूतपूर्व सैन्य भावयुक्त नागरिक शक्ति खड़ी कर दी। इनमें से किसी भी महानायक ने नकारात्मक पद्धति को नहीं चुना। सकारात्मक विचार ही उनकी शक्ति का आधार रहा।

स्वामी दयानंद सरस्वती ने पाखंड खंडनी पताका के माध्यम से हिन्दू समाज को शिथिलता से मुक्त किया और ईसाई पादरियों के पापमय, झूठे प्रचार के आघातों से हिन्दू समाज को बचाते हुए शुद्धि आंदोलन की नींव डाली। जिसके परिणामस्वरूप हिन्दू समाज की रक्षा हो पाई। स्वामी विवेकानंद और स्वामी रामतीर्थ ने विश्वभर में हिन्दू धर्म के श्रेष्ठतम स्वरूप का परिचय देते हुए ईसाई और मुस्लिम आक्रमणों के कारण हतबल दिख रहे हिन्दू समाज में नूतन प्राण का संचार करते हुए समाज का सामूहिक मनोबल बढ़ाया।

विडंबना यह है कि आज हिन्दू समाज अपनी ही दुर्बलताओं और आपसी फूट का शिकार होकर कुंठा और क्रोध की अभिव्यक्ति कर रहा है। उस पर चारों ओर से हमले आज भी जारी है। जिस भारत को अपने हिन्दू होने पर सर्वाधिक गर्व करना चाहिए था, उस भारत को अपने हिन्दुत्व पर शर्म करने के पाठ सिखाए जाने लगे तो इसका सामाजिक तनाव और राजनीतिक ध्रुवीकरण के रूप में जो परिणाम होना था वह हुआ ही।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हिन्दू आग्रह और हिन्दू नवोन्मेष को भारतीय धर्म की सात्विक और सकारात्मक धारा के रूप में मान्य करने के बजाय उसे दो बार प्रतिबंधित किया गया। सेकुलर प्रहार से हिन्दू स्वर साइबेरिया और गुलाग जैसे श्रम शिविरों की स्थिति में धकेल दिया गया है। किसी भी तथाकथित मुख्य धारा के समाचार-पत्र, चैनल या मंच पर उस हिन्दू का स्वर वर्जित और प्रतिबंधित है, जिस हिन्दू स्वर ने केन्द्रित सत्ता में भी आने का जनादेश, का ही सही किंतु प्राप्त कर दिखाया था और जो आज देश के विभिन्न प्रांतों किसी भी सेकुलर राजनीतिक व्यवस्था से ज़्यादा प्रभावी एवं महत्वपूर्ण स्थिति प्राप्त कर चुके हैं।

राजनीति में यह वैचारिक अस्पृश्यता और घृणा जनित आक्रमण हिन्दू को एवं प्रतिशोधक आक्रामकता के तेवर अपनाने की ओर धकेल रहा है। यह न देश के लिए ठीक है न उन सेकुलरों के लिए जिनका स्वर जिहादी घृणा का स्वरूप प्रकट करता है और असंदिग्ध रूप से वह हिन्दू समाज के व्यापक हितों को तो पूरा ही नहीं करता।

हिन्दू बहुसंख्यक देश में 5 लाख हिन्दुओं का शरणार्थी के रूप में निर्वासन पूरे भारत के लिए कलंक और शर्म की बात है। हिन्दुओं का मतांतरण बहुत ही तीव्र गति से जारी है और इसके लिए अमेरिका तथा यूरोप से प्रतिवर्ष अरबों डॉलर चर्च संगठनों को दिए जा रहे हैं। केन्द्रीय सत्ता में एक ऐसे सेक्युलर राजनीतिक गठबंधन का शासन है जो हिन्दू संवेदनाओं पर प्रहार करना अपने सेक्युलर पंथ की पहली पहचान मानता है। इसके राज्य में हिन्दुओं पर हमले बढ़े हैं। हिन्दू संवेदनाओं का अपमान सामान्य राजकीय पद्धति का अंग मान लिया गया है। रामसेतु तोड़ने और राम के अस्तित्व को नकारने जैसी घटनाओं, मज़हब के आधार पर मुस्लिम आरक्षण तथा आतंकवाद के विरूद्ध मुहिम में मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण ढिलाई जैसे घटनाक्रमों ने हिन्दू मन को बेहद आहत किया।

यदि वास्तव में हिन्दू संगठनों और राजनीतिक हिन्दू नेताओं की बेहतर साख होती तो हिन्दुओं का क्रोध हिंसक रूप नहीं लेता जैसा कि उड़ीसा और मंगलौर में दिखा। हिन्दुओं के इस रूप की निन्दा कर सेक्युलर भाषा बोलने से भी समाधान नहीं निकलेगा। आज हिन्दुओं को चारों ओर से घेर दिया गया है। हिन्दू संत की हत्या पर न अमेरिका में आवाज उठती है न वेटिकन में और दिल्ली के राजनेता वोट बैंक के भय से सन्नाटा ओढ़े रहते हैं। क्या कोई बता सकता है कि देश भर में हिन्दुओं के कितने विद्यालय कंधमाल में स्वामी जी की हत्या के विरोध में बंद रहे? ईसाइयों ने देशभर के 2500 विद्यालय हिन्दुओं के विरोध में बंद करने का साहस दिखाया जबकि अधिकांश विद्यालयों में हिन्दू विद्यार्थी ही पढ़ते हैं। यानि हिन्दू विद्यार्थियों का इस्तेमाल हिन्दुओं को ही आक्रामक सिद्ध करते हुए उन्हें बदनाम करने के लिए किया गया ।

यह स्थिति हिन्दुओं के असंगठन से पैदा होती है। हिन्दुओं के बड़े नेता प्रभावशाली उद्योगपति और समाज के अग्रणी शिक्षाविद् हिन्दू संवेदना पर चोट के समय खामोश रहते हैं। जब मैं वनवासी कल्याण आश्रम में प्रचारक था तो जिन उद्योगपतियों से 1500 रुपये की सहायता लेने के लिए मुझे 2-2 घंटे उनका कमरे के बाहर प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, वही उद्योगपति मदर टेरेसा के घर जाकर लाखों रूपये दे आते थे जबकि वह पैसा हिन्दुओं के धर्मान्तरण के लिए ही खर्च होता था।

अगर हिन्दुओं को भारत वर्ष में अपनी धर्म संस्कृति और सभ्यता बचाने का हक नहीं होगा तो क्या यह काम वह सऊदी अरब में कर सकेंगे? सैकड़ों सालों से भारत में जन्मे पंथों पर विदेशी आक्रमण हुए। इन पंथों में वैदिक सनातनी सिख, जैन, बौद्ध आदि शामिल हैं। परन्तु आज़ादी के बाद इन्हीं पंथों पर जिहादी और ईसाई मतांतरण के आक्रमण बढ़ते गए। क्या हमें अपना धर्म बचाने का हक नहीं? यह हक अपने समाज के भीतर व्याप्त पाखण्ड को दूर करते हुए तथा पंडों, पुजारियों और ऊंची जात का अहंकार रखने वाले लोगों से धर्म को वंचित तथा वनवासी समाज के लिए समान रूप से ले जाने पर ही मिल सकता है।

दुर्गा की पूजा करना और फिर कन्या भ्रूण हत्या करना, देवी से धन, विद्या, शक्ति मांगना फिर दहेज न लाने पर उसी देवी को जलाकर मार डालना तीर्थ और मंदिर गंदे रखना तथा हिन्दू द्वारा ही हिन्दुओं के विरोध में खड़ा होना आज के हिन्दु-समाज की समस्याएं हैं। अगर हम इकट्ठा हो गए तो न जिहाद जीत सकता है और न ही मतांतरण की शक्तियां ।

यही समय की आवश्यकता है न कि चर्च पर हमले।

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