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Tuesday, December 29, 2015

Mussourie may see end to man-driven rickshaws-Tarun Vijay offers E-Rickshaws to local body

Mussouri may see end to man-driven rickshaws-Tarun Vijay offers  E-Rickshaws to local body

http://timesofindia.indiatimes.com/city/dehradun/25-e-rickshaws-to-ply-on-Mussoorie-roads/articleshow/50371838.cms

Also demands special focus on expediting road building  on Tibet-China border and creation of special Nanda Devi Raj Jat region for infrastructure 

29th December 2015- Dehradun- In the Uttarakhand state Vigilance and Monitoring Committee meeting, BJP MP Shri Tarun Vijay asked the state govt to include providing E Rickshaws to the local people and also to have a provision to give easy loans to them for the purchase so that the scourge of man-pulled Rickshaws from Mussurie may come to an end. He also  offered twenty five E Rickshaw to the municipality , Mussourie from his MP LAD funds to initiate the process . He said that e Rickshaws are almost maintenance free, pollution free, and easily available., Each E Rickshaw costs app 1.20 lakhs. He urged the Uttarakhand state Rural Development Minister Shri Pritam Singh to include distribution of E R$rickshaws and provide easy loans for poor to prchase it in state govt.'s social welfare schemes. The Minister immdtly instructed the concerned officers to see if that can be done and appreciated the idea.

Shri Tarun Vijay suggested formation of a special China-Tibet border area road development monitoring committee  so that these areas get best of the roads and help national security as well as stem the exodus from these areas facilitating more infrastructure development. He brought to the notice of govt that Milam Munshiyari road need special push by all concerned . He also gave a startling information that on Milam road, hundreds of acres of Bhojpatra forest is being denuded by unscrupulous wood-sellers." Please do something and save Bhojpatra forest on this route" he urged the minister.


He also demanded to mark areas falling under Nanda Devi Raj Jat pilgrimage as special Nanda Devi Zone for speedy infrastructure development so that these areas become accessible and attractive  tourist destination all year   long.

Thursday, October 29, 2015

भारत का अफ्रीकी योग --तरुण विजय

http://epaper.amarujala.com/svww_index.php
भारत का अफ्रीकी योग
तरुण विजय
पिछले वर्षों में अफ्रीकी देशों में 70 तख्तापलट और ′स्थानीय विद्रोहों′ की घटनाएं हुईं, तथा 13 से अधिक अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों की क्रूर हत्याएं हुईं। अमेरिका और सोवियत संघ के शीतयुद्ध का भी अफ्रीका शिकार रहा। द्वितीय कांगो युद्ध में 50 लाख अफ्रीकी मारे गए, जबकि रवांडा के भयानक नरसंहार में आठ लाख अफ्रीकियों का कत्लेआम हुआ। एड्स जैसी बीमारियां भी वहां फैलीं।

भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है, जिसके स्वर तनावग्रस्त क्षेत्रों में राहत का योग सिद्ध होंगे।

भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में भारतीय वेशभूषा में अफ्रीकी नेताओं का दृश्य भारत की विदेश नीति की शिखर उपलब्धि का चटक रंग जमा गया। न सिर्फ इसलिए यह शिखर सम्मेलन असाधारण और अभूतपूर्व है, क्योंकि पहली बार भारत ने यह पहल की है, बल्कि इसलिए भी, कि सभी 54 अफ्रीकी देशों की इसमें भागीदारी है और 40 अफ्रीकी देशों के राष्ट्र प्रमुख उपस्थित हैं।
अफ्रीकी देशों के साथ भारत के दस्तावेजी प्रमाण सहित संबंध दो हजार साल से भी पुराने हैं। तब इथियोपिया के सम्राट को भारत के वस्त्र और स्वर्णाभूषण बहुत प्रिय थे और भारत के व्यापारी बड़ी तादाद में वहां व्यापार करते थे। पिछले दिनों मैं इथियोपिया गया था। वहां के न केवल वास्तुशिल्प, बल्कि जेवरों पर होनेवाली मीनाकारी में भी भारत की पहचान को वहां की सरकार सम्मान सहित स्वीकार करती है। मिस्र के साथ भारत का व्यापार ईसा सदी पूर्व से चलता रहा। यूनानी इतिहासकार स्राबो ने 130 ईसा पूर्व भारत से 120 समुद्री जहाजों में आई विभिन्न सामग्रियों का जिक्र किया है। मुंबई और गोवा गुजराती व्यापारियों द्वारा अफ्रीका में सामान भेजे जाने के महत्वपूर्ण केंद्र थे। फिर महात्मा गांधी का अफ्रीका के साथ संबंध समसामयिक भारत का अफ्रीकी देशों के साथ सबसे बड़ा और मजबूत सेतु है।
लेकिन बीच का कालखंड ऐसा बीता, जिसमें भावनात्मक जुड़ाव भले ही रहा हो, पर कूटनीतिक और आर्थिक संबंध लगभग ठंडे ही रहे। जहां भारत-अफ्रीका व्यापार लगभग 70 अरब डॉलर तक पहुंच पाया, वहीं चीन ने देरी से अफ्रीका की ओर ध्यान देकर उसके साथ 200 अरब डॉलर के व्यापार का स्तर हासिल कर लिया। न केवल वह अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना, बल्कि अफ्रीका में अपना सामान बेचने की दृष्टि से भी वह सबसे आगे है। सस्ते चीनी कपड़े, गाड़ियां और अफ्रीकी ढांचागत निर्माण कार्यों में चीन का पैसा अफ्रीका को लुभाता ही है।
इस परिदृश्य में भारत के स्वाभाविक और शताब्दियों पुराने मित्र अफ्रीकी महाद्वीप की ओर प्रधानमंत्री ने पहल करके यह शिखर सम्मेलन आयोजित कर भारत-अफ्रीकी संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत की है। पहली बार अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया और आतंकवाद ग्रस्त अफ्रीकी महाद्वीप की सुरक्षा के लिए भारत से सामरिक संबंध बढ़ाने की अपेक्षा की। वरना अभी तक शिक्षा, कृषि और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर ही भारत-अफ्रीकी संबंध सीमित रहते थे। अफ्रीकी देश बोको हरम तथा आईएस जैसे आतंकवादी संगठनों से संत्रस्त हैं। पूर्वी अफ्रीका में सोमालिया केंद्रित आतंकवादी गुट अल शवाब पिछले वर्ष केन्या के नगरों और गांवों में आक्रमण कर 200 लोगों की हत्या करने का दोषी है। पश्चिमी अफ्रीका में बोको हरम ने एक वर्ष में 5,000 अफ्रीकियों को मार डाला। चिबोक शहर में 276 छात्राओं के अपहरण और उनके शारीरिक शोषण की भयावह घटना ने सारे विश्व को स्तब्ध कर दिया था। हालांकि अमेरिका ने ट्रांस सहारा आतंकवाद विरोधी साझेदारी में अल्जीरिया, कैमरून, मोरक्को, नाइजीरिया और ट्यूनीशिया जैसे 11 देशों के साथ कार्रवाई शुरू की, पर वह आतंकवाद के बढ़ते विस्तार के सामने अप्रभावी सिद्ध हुई। 
भारत की विश्व स्तरीय उपस्थिति और आर्थिक हितों के लिए अफ्रीकी महाद्वीप के देशों के साथ गहन संबंध बहुत आवश्यक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक दृष्टि ने अफ्रीका के साथ संबंध बढ़ाने की जो पहल की है, उनमें जहां सामरिक एवं रक्षा समझौते महत्वपूर्ण हैं, वहीं मानव संसाधन विकास, सूचना-प्रौद्योगिकी, ढांचागत सुविधाओं का निर्माण, स्वच्छ ऊर्जा, शैक्षिक एवं शोध के संस्थानों की स्थापना, कौशल विकास तथा कृषि एजेंडे पर मुख्य बिंदु हैं। भारत का निवेश, जो आज 30 से 35 अरब डॉलर के दायरे में है, बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक ले जाना आर्थिक संबंधों की दृष्टि से अफ्रीका को पुनः भारत से जोड़ सकता है।
अधिकांश अफ्रीकी देश यूरोपीय उपनिवेशवाद और गोरों के नस्लीय भेदभाव के शिकार रहे। वहां अस्थिरता, भ्रष्टाचार, हिंसा तथा एकतंत्रवादी तानाशाही का बोलबाला सामान्य जनता के विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। अधिकांश अफ्रीकी देश ऐसे गणतंत्र हैं, जो किसी न किसी प्रकार की राष्ट्रपति केंद्रित व्यवस्था के अंतर्गत चल रहे हैं। अनेक देशों में विभिन्न नस्ल एवं कबीलों में बंटे गुटों में आपसी हिंसक शत्रुता लगभग युद्ध जैसी स्थिति की निरंतरता बनाए रखती है। पिछले वर्षों में अफ्रीकी देशों में 70 तख्तापलट और ′स्थानीय विद्रोहों′ की घटनाएं हुईं, तथा 13 से अधिक अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों की क्रूर हत्याएं हुईं। अमेरिका और सोवियत संघ के शीतयुद्ध का भी अफ्रीका शिकार रहा। द्वितीय कांगो युद्ध में 50 लाख अफ्रीकी मारे गए, जबकि रवांडा के भयानक नरसंहार में आठ लाख अफ्रीकियों का कत्लेआम हुआ। एड्स जैसी बीमारियां भी वहां फैलीं।
यह परिदृश्य मानवीय दृष्टि से भी अफ्रीकी देशों के प्रति भारत की अधिक बड़ी एवं सार्थक भूमिका की मांग करता है। भारत का अधिकांश ध्यान यूरोप तथा मध्य पूर्व की ओर रहा तथा पिछले दो दशकों से पूर्वी एशिया की ओर भारत की विदेश नीति केंद्रित हुई। अब अफ्रीकी देशों की ओर भारत की दृष्टि और कर्मशीलता का बढ़ना न केवल भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के लिए, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और अफ्रीकी देशों की निश्छल सौहार्दपूर्ण भारत नीति के ऋण से उऋण होने का भी विराट प्रयास है। भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है, जिसके स्वर तनावग्रस्त क्षेत्रों में राहत का योग सिद्ध होंगे।
-लेखक भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं 
भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है। पहली बार अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों ने भारत के साथ सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।

Tuesday, October 20, 2015

Tarun Vijay's first Tamil column begins on TOI's Samayam.com

வட இந்தியாவில் விருப்பப் பாடமாக தமிழை அறிமுகப்படுத்த வேண்டும்




நாடாளுமன்றத்தில் நான் பேசுகையில், திருவள்ளுவர் தினத்தை ‘இந்திய மொழிகள்’ நாளாக கொண்டாட வேண்டும் என்று கூறியதை கட்சி வேறுபாடின்றி அனைவரும் வரவேற்றனர். இதுதான் இந்திய ஜனநாயகத்தின் சிறப்பு. அனைத்து இந்திய மொழிகளுக்கும் மரியாதை அளிக்கும் வகையில் வட மாநிலங்களிலும் திருக்குறளை அறிமுகப்படுத்த வேண்டும் என்று நான் வலியுறுத்தியதை அனைவரும் ஏற்றுக் கொண்டனர்.
தேசிய ஒருமைப்பாட்டை வலுப்படுத்தும் வகையில் வடஇந்தியப் பள்ளிகளில் தமிழை விருப்பப்பாடமாக அறிமுகப்படுத்த வேண்டும்.
திருவள்ளுவர் மற்றும் சுப்ரமணிய பாரதியின் வாழ்க்கை குறிப்புகளை பாடமாக சேர்க்க மற்றும் அவர்களது பிறந்த நாளை வட இந்தியப் பள்ளிகளில் கொண்டாடவும் மத்திய மனித வளத்துறை அமைச்சர் ஸ்மிருதி ஈரானி ஒப்புக் கொண்டுள்ளார்.
சமீபத்தில் பல்கலைக் கழக மானியக் குழு  இவர்கள் தொடர்பான கட்டுரைப் போட்டிகளை நடத்தி இருந்தது.
பழமையான தமிழ் மொழியை வணங்கி எனது முதல் கட்டுரையை முடிக்கிறேன்.
எழுதியவர் – தருண் விஜய் (பாஜக எம்.பி.,)
(உத்தரகண்ட்டில் இருந்து மாநிலங்களவைக்கு தேர்வு செய்யப்பட்டவர் தருண் விஜய். தமிழுக்கு இவர் ஆற்றி வரும் சேவையைப் பாராட்டி இவருக்கு கடந்தாண்டு மலேசிய தமிழ் இலக்கிய அமைப்பு விருது வழங்கியதை அடுத்து, ”திருக்குறளின் தூதர்’ என்று இவர் அழைக்கப்படுகிறார்.
இந்திய, சீன நண்பர்கள் அமைப்பின் தலைவராகவும், ராணுவத்துக்கான நாடாளுமன்ற நிலைக்குழு கமிட்டியின் உறுப்பினராகவும், மாணவர்கள் மற்றும் இளைஞர்களுக்கான திருவள்ளுவர் அமைப்பின் தலைவராகவும் உள்ளார்.)
தமிழில்: தனலட்சுமி.G.
மறுப்பு : மேலே கூறிய கருத்துக்கள் ஆசிரியரின் சொந்தக் கருத்து

अचानक ऐसा माहौल बना दिया , मानो हिंदू क्रूर हैं। हिंदू आज पुनः सेक्यूलर आघातों का शिकार हो रहा है।


Daily Amar Ujala, 19th October 2015, page 13, main edit page article

यदि सेक्यूलर अपने ′बीफ विचारों′ के प्रति इतने ही आश्वस्त हैं, तो बिहार, उत्तर प्रदेश के चुनावों में घोषित कर दें कि उनकी सरकार यदि आई, तो गोमांस सर्वसुलभ कर देगी। फिर नतीजे देख लें। हमें यह समझना होगा कि मोदी सरकार को मिले असाधारण और अभूतपूर्व बहुमत से बौखलाए वर्ग द्वारा यह हरसंभव प्रयास किया जाएगा कि सामाजिक वातावरण ऐसा विषाक्त हो जाए, जिससे मोदी सरकार पर प्रहार किया जा सके। 
इन विवादों में उलझने के बजाय देश के हित में विकास एवं निर्माण क्षेत्र की मजबूती में जुटना सबसे बड़ी गौ-सेवा एवं भारत सेवा होगी।

उदार हुए बिना कैसे हिंदू
तरुण विजय


विकास और पूंजी निवेश की बात करते-करते अचानक ऐसा माहौल बना दिया गया है, मानो इस देश के हिंदू क्रूर और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर लोगों के खान-पान में भी बाधा डालने वाले हैं।


यदि कोई हिंदू ऐसी किसी हिंसा का समर्थन करता है, अथवा सार्वजनिक समाज में अभद्रता और हिंसा का सहारा लेता है, तो वह अपने हिंदूपन से च्युत हो जाता है। हिंदू होने का अर्थ ही है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वैचारिक निर्बंधता में विश्वास करना।

गुलाम अली और कसूरी के कार्यक्रमों की अनुमति भाजपा नीत प्रदेश सरकार ने ही दी थी। भारत उस वर्ग में नहीं खड़ा होना चाहेगा, जहां संगीत को आक्रमण झेलना पड़े। पाकिस्तान में ऐसा होता है। लेकिन वह हमारा आदर्श नहीं हो सकता। जिससे हम सहमत नहीं भी हैं, उसे भी यदि अपनी बात कहने का कोई स्थान मिलना चाहिए, तो वह भारत ही हो सकता है।

देश का एक वर्ग, जो स्वयं को सेक्यूलर कहता है, और अंग्रेजी मीडिया में छाया हुआ है, वह हिंदू भावनाओं को आहत करना ही सेक्यूलरवाद की कसौटी मान बैठा है। जिस देश में कृष्ण को गोपाल कहकर पूजा जाता है, और जहां करोड़ों ऐसे हिंदू रहते हैं, जो गाय को अपनी मां के समान मानते हैं, वहां गाय को निशाना बनते देखना अपनी जननी पर आक्रमण के समान माना जाता है। क्या हिंदू अपने देश में अपनी भावनाओं के सम्मान की अपेक्षा नहीं कर सकते?



विश्व में यदि सर्वप्रथम किसी जाति और समाज ने उदार चरितानाम वसुधैव कुटुम्बकम कहा, तो वह हिंदू ही है। उदार हुए बिना आप हिंदू कैसे हो सकते हैं? इसी उदार हिंदू ने उन सेक्यूलर आघातों से परेशान होकर छद्म सेक्यूलरवाद शब्द गढ़ा, जिन आघातों ने हिंदू विरोध को ही सेक्यूलर होने का पर्याय बना दिया था। इसी माहौल का परिणाम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को अभूतपूर्व जन समर्थन में मिला। अपने हिंदू होने के प्रति क्षमा भाव न रखने वाला हिंदू आज पुनः सेक्यूलर आघातों का शिकार हो रहा है।
विकास और पूंजी निवेश की बात करते-करते अचानक ऐसा माहौल बना दिया गया है, मानो इस देश के हिंदू क्रूर और लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर लोगों के खान-पान में भी बाधा डालने वाले हैं। दादरी कांड, गुलाम अली के गायन कार्यक्रम और कसूरी की पुस्तक के विमोचन पर हुआ हंगामा तथा कुछ लेखकों की घृणित हत्या की घटनाओं से मीडिया एवं सार्वजनिक समाज के अन्य माध्यमों पर छाए कुछ लोगों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि ये घटनाएं उन प्रदेश सरकारों से संबंधित नहीं है, जहां ये घटी हैं, बल्कि इन सबकी जिम्मेदारी दिल्ली में मोदी सरकार और हिंदू संगठनों की है।
यह एक विद्रूप भरी स्थिति है। यदि कोई हिंदू ऐसी किसी हिंसा का समर्थन करता है, अथवा सार्वजनिक समाज में अभद्रता और हिंसा का सहारा लेता है, तो वह अपने हिंदूपन से च्युत हो जाता है। हिंदू होने का अर्थ ही है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वैचारिक निर्बंधता में विश्वास करना।
दादरी कांड के संबंध में मैंने कहा था कि इकलाख की बेटी का दुख हमारी अपनी बेटी के दुख जैसा महसूस होता है। किसी को भी किसी भी स्थिति में कानून अपने हाथ में लेने अथवा भीड़ का न्याय अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। लेकिन इसे भी प्रताप भानु मेहता जैसे लेखक ने तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया। गुलाम अली और कसूरी के कार्यक्रमों की अनुमति भाजपा नीत प्रदेश सरकार ने ही दी थी। भारत उस वर्ग में नहीं खड़ा होना चाहेगा, जहां संगीत को आक्रमण झेलना पड़े। पाकिस्तान में ऐसा होता है। लेकिन वह हमारा आदर्श नहीं हो सकता। जिससे हम सहमत नहीं भी हैं, उसे भी यदि अपनी बात कहने का कोई स्थान मिलना चाहिए, तो वह भारत ही हो सकता है।
भारत के हिंदू दुनिया भर में जाते हैं और उन होटलों में भी अपनी पसंद का या शाकाहारी खाना खाते हैं, जहां गोमांस बनता है। स्वामी विवेकानंद ने अपनी पुस्तक प्राच्य और पाश्चात्य में हिंदुओं के खान-पान संबंधी तीव्र मतों पर कठोर प्रहार किया है। भारत के जो संत और भिक्षु धर्म प्रचार के लिए विश्व भर में गए, वे यदि खान-पान के संबंध में इतनी तीव्रताएं व्यवहार में लाते, तो क्या चीन, जापान, कोरिया जैसे देशों में बौद्ध मत एवं हिंदू सनातन विचार का प्रसार हो पाता? सामिष और निरामिष का द्वंद्व बहुत पुराना है, और यह सदैव व्यक्तिगत पसंद और नापसंद का ही विषय बने रहना चाहिए।
देश का एक वर्ग, जो स्वयं को सेक्यूलर कहता है, और अंग्रेजी मीडिया में छाया हुआ है, वह हिंदू भावनाओं को आहत करना ही सेक्यूलरवाद की कसौटी मान बैठा है। जिस देश में कृष्ण को गोपाल कहकर पूजा जाता है, और जहां करोड़ों ऐसे हिंदू रहते हैं, जो गाय को अपनी मां के समान मानते हैं, वहां गाय को निशाना बनते देखना अपनी जननी पर आक्रमण के समान माना जाता है। क्या हिंदू अपने देश में अपनी भावनाओं के सम्मान की अपेक्षा नहीं कर सकते?
कुछ लोगों द्वारा साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी लौटाए जा रहे हैं। क्या वे इस बात का जवाब देंगे कि देश में क्या 1984 के सिख दंगों से भी ज्यादा भयानक स्थिति आ गई है? उस समय ये लोग खामोश रहे। तब भी इन लोगों की आत्मा नहीं तड़पी, जब करीब पांच लाख हिंदुओं को अपमानित एवं उनकी स्त्रियों को जलील कर कश्मीर से निकलने के लिए मजबूर किया गया, या जब देश के सैनिक, साधारण अध्यापक और किसान नक्सलियों के हाथों मारे जाते हैं। उनकी पुरस्कार वापसी घटिया राजनीति ही है।
इसी प्रकार पानसारे और कलबुर्गी जैसे लेखकों की हत्या भर्त्सना योग्य है। हालांकि लोग नहीं जानते कि कलबुर्गी ने अपने लेखों और भाषणों में अपनी दृष्टि से अंधविश्वास पर हमला करते हुए कई बार सीमाएं भी लांघी हैं। इसका कुछ विरोध हुआ, लेकिन फिर भी यदि ऐसे कथन पर आपत्ति है, तो सहारा केवल कानून का ही लिया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से स्वयं को सेक्यूलर कहने वाले वर्ग ने पिछले छह दशकों से हर बौद्धिक संस्थान, मीडिया घरानों के स्तंभों तथा शासकीय केंद्रों से संचालित शिक्षा माध्यमों से स्टालिन की मानसिकता दिखाते हुए राष्ट्रीयता की विचारधारा से जुड़े लोगों को अस्पृश्य बनाए रखना। उनकी मठाधीशी अब खत्म हो रही है, तो उन्हें बौखलाहट में केवल मोदी पर हमला ही सूझ रहा है।
यदि सेक्यूलर अपने ′बीफ विचारों′ के प्रति इतने ही आश्वस्त हैं, तो बिहार, उत्तर प्रदेश के चुनावों में घोषित कर दें कि उनकी सरकार यदि आई, तो गोमांस सर्वसुलभ कर देगी। फिर नतीजे देख लें। हमें यह समझना होगा कि मोदी सरकार को मिले असाधारण और अभूतपूर्व बहुमत से बौखलाए वर्ग द्वारा यह हरसंभव प्रयास किया जाएगा कि सामाजिक वातावरण ऐसा विषाक्त हो जाए, जिससे मोदी सरकार पर प्रहार किया जा सके। इन विवादों में उलझने के बजाय देश के हित में विकास एवं निर्माण क्षेत्र की मजबूती में जुटना सबसे बड़ी गौ-सेवा एवं भारत सेवा होगी।

Monday, October 19, 2015

Great Soldiers' Gate , a memorial to “Ayo Gorkhali” approved by Tarun Vijay in Dehradun cantt


http://timesofindia.indiatimes.com/india/Gorkhali-Sudhar-Sabha-felicitates-Rajya-Sabha-member-Tarun-Vijay/articleshow/49459192.cms
Gorkhali Sudhar Sabha felicitates Rajya Sabha member Tarun Vijay
An Auditorium and a Memorial to “Ayo Gorkhali” approved
19th October, 2015, Dehradun

Mr. Tarun Vijay, Member of Parliament, Rajya Sabha from Uttarakhand was warmly greeted and felicitated by the most reputed Gorkha Social Organisation Gorkhali Sudhar Sabha (established in 1934).  The President of Gorkhali Sudhar Sabha, Col. P.S. Chhetri (retd.) presented a traditional Bejewelled Khukri- the traditional lethal weapon of the Charging Gorkha to Shri Tarun Vijay and said that he is the first M.P. to give Rs. 2 crores for erecting a grand war memorial to the warriors of the State and also he has  agreed to have an auditorium for Gorkhali Sudhar Sabha.  In his acceptance speech, Shri Tarun Vijay said that the Gorkhas are synonymous  with valour and victory.   Wherever Gorkha soldiers strike,  victory follows them.  He announced Rupees Ten Lakhs from MPLADS funds to build an auditorium for Gorkhali Sudhar Sabha.  He also announced a massive “the Great Soldier Gate” at the entry point to the cantt. area. of Dehradun and a memorial to the Gorkha soldiers-“Ayo Gorkhali” in commemoration of the completion of 100 years of Gorkha Regiment in Dehradun.  



Monday, August 17, 2015

Its now or never moment for India







 |  6-minute read |   16-08-2015
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Narendra Modi has arrived. He has arrived as the messenger of the second freedom struggle for India. His speech, the second one from the ramparts of the Red Fort, was a speech of a national rejuvenator and a "Baahubali", who loves his nation and her people. And can do anything to see a powerful nation re-emerging out of despondency.
Today, which also happens to be the birthday of the great seer Sri Aurobindo, looks like the beginning of a new era for a bruised and battered nation.
It's a "now or never" moment for India. Suddenly the dreams have returned to our eyes and the path to freedom from poverty and backwardness looks aglow with the sweat of our leader who has the guts to lead us from the front. The uneducated, corruption-ridden, lethargic and hopeless India, a "gift" of the continuous rule by the Congress has found a safaiwala who will create a new and vibrant nation with a glory that had always been the hallmark of our land and our people.
The history of a nation looted, burnt, massacred and subjugated must find a closing chapter. And for ever. Delhi was massacred 18 times. And our people, who handwrote three million books on science, arts, philosophy, metallurgy, chemistry, physics, astronomy and dharma were made to witness the burning of their libraries, in Taksh Shila (Taxila) and in Nalanda. One of the most beautiful and well architectured city we had built - Hampi - was hammered down to lie in ruins. Our freedom was forced to be truncated and a million people lost their lives and a majority of those who survived lost their homes and families.
This is how we arrived to see the dawn of August 15.
It's a story of us, a story woven with the sacrifices of our brave forefathers, a story that tells the spine-chilling cruelty of mlecchha invaders who buried alive our beloved sahibzadas, Zorawar Singh and Fateh Singh in the walls of Sirhind fort - brick-by-brick. Think about the pains and tears of their grandmother, Mata Gujari, who had to find her way through thick forests protecting her two other grandsons from wild animals and wilder hounds of the enemy. Ask your own conscience why Guru Tegh Bahadur was called "Hind Ki Chadar" and not "Punjab Ki Chadar".
Those 400 great Tamil freedom fighters who were hanged in a single day by the British for demanding independence and those like Velu Nachiyar, Rani Gaidinliu, who fought to free India from the foreign yoke may find little or no mention in the highly prejudiced and Left-tainted history books. Yet their sacrifices make the colours of the tricolour brighter and honourable.
This is how we have arrived at a moment where celebrating Independence Day became possible.
It's possible to yell with all your strength a great and thrilling Vande Mataram because our soldiers, as a tradition, and as a faith, protect our motherland, standing guard at Siachen and Jaisalmer.
And look, those who can't even remember the names of five freedom fighters or sing a patriotic song, and those who have discarded the language of the people of the nation whose name appears on the first page of their passports, still want to rule us.
After all those turbulent years this nation has gone through, a bunch of mavericks are wasting a nation. They are wasting the collective strength of a billion-plus people. Should they be ignored or pardoned, or allowed to put hurdles in the path of a nation that is moving pretty fast? Should we take lightly how these people tried to insult and humiliate a lady speaker of the Parliament and demonstrated in a brazenly cave-age manner before her residence?
Efforts to paralyse a nation is a sin and a crime worse than the ones perpetrated by those who came and invaded us. They were foreigners. But these power hungry arrogant road-blockers are hurting their motherland from within.
Look back at how these very types of leaders yielded to the British and wasted the sacrifices of our freedom fighters by accepting a partition of the nation.
Look back how in the very initial days, immediately after we had unfurled the tricolour from the ramparts of the Red Fort, we lost a two-thirds of Kashmir and later the entire Aksai Chin to Pakistan and China. The very first step into freedom was marred by the jeep scandal, affecting the security and morale of our soldiers. The first 15 years saw one lakh twenty five thousand sq kms of India's land being occupied by aliens and then came the blow of 1962, when we lost a war with China.
The economy was shackled with permit-quota raj, politics was sliding deep into corruption, the administration was clueless about the new regime; it simply followed the colonial legacies.
Bharatvarsha, that is India, became a poorly translated copy of the British India of the Nehruvian order. The Constitution was a "copy and paste" work of the Government of India Act of 1935. The Indian Civil Service (ICS) became Indian Administrative Service (IAS). And above all, the people of this land who were born with the culture and civilisation that created the fabric of our national life were suspected and contemptuously discarded. All doors to mainstream intellectual dialogues, centres of knowledges and political interactions were closed for them, even invitations to the Rashtrapati Bhawan and Governors' "high tea parties" and banquets were never meant for a huge section of our people who stood firmly for an ideology that reflected the core values of our nation. This was an era of ideological apartheid at its worst.
Every dark age has an end and this too was ended with a massive mandate by the people of India for the National Democratic Alliance (NDA) in general election 2014. The hateful elite was overthrown in a democratic revolution and this led to pain for those who couldn't stomach the defeat. It was a normal phenomenon with totalitarian, stinking rich rulers who become blind with their money and long stint in power, being involved.
Let patriotic people rise against these elements, who are worse than the British. Let's not allow them to waste the nation. Villages, cities and towns, our distant regions in the northeast and Ladakh and pavement dwellers in Mumbai and Chennai and Kolkata, our fresh new generation gleaming with hope and aspirations are waiting for electricity and potable water and good schools and health centres. Enemies on the borders are waiting to be silenced and housewives waiting for a happier times. Let the nation rise again. And frivolous, de-Indianised elements be junked. Once and for ever. 
That will mean a freedom genuinely achieved for India. That will be the second freedom struggle for us all. Vande Mataram.

Saturday, August 15, 2015

Tarun Vijay organises cycle rally to salute soldiers and provide Pradhan Mantri Suraksha Beema.to students

Governor, Uttarakhand Dr K.K. Paul with Shri Tarun Vijay and his team of cyclists - Sainik Samman Rally 

Governor Dr K.K.Paul warmly greeting Shri Tarun Vijay
Tarun Vijay organises cycle rally to salute soldier and provide  PM Suraksha Beema.to students
Governor lauds the effort, Blessed participants

A unique cycle rally  to salute soldiers was  led by Shri Tarun Vijay, MP , Uttarakhand today on the occasion of independence day. About 500 students and youths participated from 25 colleges and Petroleum University too.
Smt Vandana Bisht Vijay also led the  girl students on cycles and pedalled her way to Cheed Bagh, the proposed site of Shaurya Steal, ( war memorial) being visited by defence Minister Shri Manohar Parrikar on 22nd August. The rally 's convenor was Shri Joginder Pundir who made the event a grand success. 
 Govind Mohan, Bharat Ahuja, Rakesh Chalga, Richa Jauhri ( of Talent Enablers fame) , BJP city President Neelam Mahajan, and several local sports enthusiasts were present .

The State Bank of India provided Prime Minister Suraksha beam to all participants . The SBI team was led by regional manager Shri V.S. Kalura and Shri SS Tomar.

The cyclists met the Governor H.E. Dr K.K.Paul  with Shri Tarun Vijay who highly appreciated the idea and blessed the students. The rally was dedicated to the memory of Dr Abdul Kalam.

Speaking to media Shri Tarun Vijay said that gradually the soldier's exalted position in society is being hurt by so called secular politicians who treat them at par with other professions. While a soldier's status is completely different from every other profession, he is a cut above all. To instil the feeling of respect and honour for our forces amongst the youngsters he has organised the Cycle rally with young students. 

In the pics Governor Dr KK Paul is seen with a select group of the Cyclists, Shri Tarun Vijay, Smt Vandana Bisht Vijay, Shri Joginder Pundir, Shri Govind Mohan and other friends  are also seen with the Governor.

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Saturday, March 21, 2015

Meet the Emperor. Samrat Vikramaditya, who began Vikrami Samvat 2072 years ago.


Emperor Vikramaditya statue in the Captain's chamber on 
INS Vikramaditya
Vikram Samvat (Vikram SamwatVikram SambtBikram SamvatBikram SamwatBikram Sambat or Vikram's Era) विक्रम सम्वत्)  is the calendar established by emperor Vikramaditya. It uses lunar months and solar sidereal year. It is the official calendar of Nepal, also termed Bikram Sambat, but is computed using the tropical year.
The Vikrama Samvat is said to have been founded by the emperor Vikramaditya of Ujjain  following his victory over the Sakas in 56 BC, Indian Navy's proud warship, with a 12 acre deck, is named after the great emperor
The statue of Emperor Vikramaditya in the Captains Chamber on INS Vikramaditya





The crest of INS Vikramaditya





Prime Minister Narendra Modi with Chief of Naval Staff Admiral RK Dhowan on the deck of INS Vikramaditya on June 14, 2014

Prime Minister Narendra Modi on Saturday June 14th, 2014, dedicated India's largest warship INS Vikramaditya to the nation.
He also sought to make the country self-reliant in manufacturing defence equipment, shedding dependence on imports.
In his first outing after taking charge as Prime Minister, he addressed the naval personnel onboard the ship off the Goa coast, calling the addition of the warship to the force as a "historic" step, reported PTI.
"It is an important day for our nation. It is a golden day in Indian Navy's history. For me, it is a matter of pride and happiness that INS Vikramaditya is joining the Navy. It is a historic step," he said.

Stressing on the need for self-reliance in defence equipment manufacturing, he said, "We need to give immense importance to latest technology. This will help the nation.
Why should we import defence equipment? We must be self sufficient. Why can't we send our defence equipment to other nations."
The Prime Minister also promised to set up a War Memorial for those who sacrificed their lives for the country.
He said this government has come with a determination and was committed to implement the "One Rank, One pension" scheme for defence personnel.

"Our government has the potential to match anyone in the world and the reason for this is the capability of our soldiers who give us the strength to do so," he said in his address, adding that the country intends to move forward in the same manner, without lowering its eyes.
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The Majestic King Emperor of the seas- VIKRAMADITYA 





Tarun Vijay with the statue of Emperor Vikramaditya on INS Vikramaditya

The statue of Emperor Vikramaditya has this explanation on the brass plate which says The Name-Vikramaditya meaning "Sun of Prowess" was a title assumed by various ancient Indian Kings. King Chandragupta II , the third Gupta emperor is widely believed to have had the best credentials and is considered as the original King Vikramaditya.


Monday, January 26, 2015

Thursday, January 22, 2015

"Thiruvalluvar Thirupayanam"

Hon'ble MP Shri. Tarun Vijay's humble tribute to the great saint poet of India 'Thiruvalluvar'

He began his Thiruvalluvar Thirupayanam from Thiruvalluvar Statue at Kanyakumari on 11th Jan 2015 and completed his payanam in Chennai on 15th Jan 2015 via Madurai and Trichy.  He also celenbrated Pongal at a Dalit Village in TN.

Few glimpses of Thiruvalluvar Thirupayanam:













The Hindu – 13 Jan 2015

Tarun Vijay promises a place for Thiruvalluvar’s portrait in parliament

STAFF REPORTER

BJP MP Tarun Vijay at Setupathi Boys Higher Secondary School in Madurai on Monday.— Photo: S. James

“I will ensure that the Indian Parliament has a statue or a portrait of great Thiruvalluvar for his contribution to Tamil Literature through Thirukkural,” said Bharathiya Janata Party (BJP) Member of Parliament Tarun Vijay here on Monday.
As a part of his “Thiruvalluvar Thiruppayanam” or yatra to promote the classic ‘Thirukkural’ and its author Thiruvalluvar, Mr. Tarun Vijay visited Madurai City from Tirunelveli and addressed a meeting organised at Setupathi Higher Secondary School.
Raising questions about the general lack of awareness in the northern parts of the country about ‘Thirukkural’ even after years of independence, Mr. Tarun Vijay said that it was one of the greatest treasures of Tamil language and Indian culture which should be taken to every part of the country.
“Tamil scholars and enthusiasts must be united in the cause of spreading awareness about the greatness of Thiruvalluvar’s works and we will ensure that all schools and colleges have a picture of Subramaniya Bharathi and Thiruvalluvar as a first step towards creating awareness,” he said.
Mr. Tarun Vijay further encouraged that ‘Thirukkural’ couplets could be painted behind autorickshaws and buses to let more people know about its greatness.
While thanking people in Madurai for the warm welcome they had extended to him, a son of the Uttarakhand soil, he spoke in remembrance of Flight Lieutenant K. Praveen of Madurai, who had lost his life while helping people during the Uttarakhand floods.

Sankara Seetharaman, vice president of Kamban Kazhagam, K. Vaidyanathan, Editor of Dinamani Newspaper, Poet So. So. Mi. Sundaram and Professor R. Sreenivasan from Sastra University also spoke at the event.