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भारत का अफ्रीकी योग
तरुण विजय
पिछले वर्षों में अफ्रीकी देशों में 70 तख्तापलट और ′स्थानीय विद्रोहों′ की घटनाएं हुईं, तथा 13 से अधिक अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों की क्रूर हत्याएं हुईं। अमेरिका और सोवियत संघ के शीतयुद्ध का भी अफ्रीका शिकार रहा। द्वितीय कांगो युद्ध में 50 लाख अफ्रीकी मारे गए, जबकि रवांडा के भयानक नरसंहार में आठ लाख अफ्रीकियों का कत्लेआम हुआ। एड्स जैसी बीमारियां भी वहां फैलीं।
भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है, जिसके स्वर तनावग्रस्त क्षेत्रों में राहत का योग सिद्ध होंगे।
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में भारतीय वेशभूषा में अफ्रीकी नेताओं का दृश्य भारत की विदेश नीति की शिखर उपलब्धि का चटक रंग जमा गया। न सिर्फ इसलिए यह शिखर सम्मेलन असाधारण और अभूतपूर्व है, क्योंकि पहली बार भारत ने यह पहल की है, बल्कि इसलिए भी, कि सभी 54 अफ्रीकी देशों की इसमें भागीदारी है और 40 अफ्रीकी देशों के राष्ट्र प्रमुख उपस्थित हैं।
अफ्रीकी देशों के साथ भारत के दस्तावेजी प्रमाण सहित संबंध दो हजार साल से भी पुराने हैं। तब इथियोपिया के सम्राट को भारत के वस्त्र और स्वर्णाभूषण बहुत प्रिय थे और भारत के व्यापारी बड़ी तादाद में वहां व्यापार करते थे। पिछले दिनों मैं इथियोपिया गया था। वहां के न केवल वास्तुशिल्प, बल्कि जेवरों पर होनेवाली मीनाकारी में भी भारत की पहचान को वहां की सरकार सम्मान सहित स्वीकार करती है। मिस्र के साथ भारत का व्यापार ईसा सदी पूर्व से चलता रहा। यूनानी इतिहासकार स्राबो ने 130 ईसा पूर्व भारत से 120 समुद्री जहाजों में आई विभिन्न सामग्रियों का जिक्र किया है। मुंबई और गोवा गुजराती व्यापारियों द्वारा अफ्रीका में सामान भेजे जाने के महत्वपूर्ण केंद्र थे। फिर महात्मा गांधी का अफ्रीका के साथ संबंध समसामयिक भारत का अफ्रीकी देशों के साथ सबसे बड़ा और मजबूत सेतु है।
लेकिन बीच का कालखंड ऐसा बीता, जिसमें भावनात्मक जुड़ाव भले ही रहा हो, पर कूटनीतिक और आर्थिक संबंध लगभग ठंडे ही रहे। जहां भारत-अफ्रीका व्यापार लगभग 70 अरब डॉलर तक पहुंच पाया, वहीं चीन ने देरी से अफ्रीका की ओर ध्यान देकर उसके साथ 200 अरब डॉलर के व्यापार का स्तर हासिल कर लिया। न केवल वह अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना, बल्कि अफ्रीका में अपना सामान बेचने की दृष्टि से भी वह सबसे आगे है। सस्ते चीनी कपड़े, गाड़ियां और अफ्रीकी ढांचागत निर्माण कार्यों में चीन का पैसा अफ्रीका को लुभाता ही है।
इस परिदृश्य में भारत के स्वाभाविक और शताब्दियों पुराने मित्र अफ्रीकी महाद्वीप की ओर प्रधानमंत्री ने पहल करके यह शिखर सम्मेलन आयोजित कर भारत-अफ्रीकी संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत की है। पहली बार अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों ने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया और आतंकवाद ग्रस्त अफ्रीकी महाद्वीप की सुरक्षा के लिए भारत से सामरिक संबंध बढ़ाने की अपेक्षा की। वरना अभी तक शिक्षा, कृषि और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर ही भारत-अफ्रीकी संबंध सीमित रहते थे। अफ्रीकी देश बोको हरम तथा आईएस जैसे आतंकवादी संगठनों से संत्रस्त हैं। पूर्वी अफ्रीका में सोमालिया केंद्रित आतंकवादी गुट अल शवाब पिछले वर्ष केन्या के नगरों और गांवों में आक्रमण कर 200 लोगों की हत्या करने का दोषी है। पश्चिमी अफ्रीका में बोको हरम ने एक वर्ष में 5,000 अफ्रीकियों को मार डाला। चिबोक शहर में 276 छात्राओं के अपहरण और उनके शारीरिक शोषण की भयावह घटना ने सारे विश्व को स्तब्ध कर दिया था। हालांकि अमेरिका ने ट्रांस सहारा आतंकवाद विरोधी साझेदारी में अल्जीरिया, कैमरून, मोरक्को, नाइजीरिया और ट्यूनीशिया जैसे 11 देशों के साथ कार्रवाई शुरू की, पर वह आतंकवाद के बढ़ते विस्तार के सामने अप्रभावी सिद्ध हुई।
भारत की विश्व स्तरीय उपस्थिति और आर्थिक हितों के लिए अफ्रीकी महाद्वीप के देशों के साथ गहन संबंध बहुत आवश्यक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक दृष्टि ने अफ्रीका के साथ संबंध बढ़ाने की जो पहल की है, उनमें जहां सामरिक एवं रक्षा समझौते महत्वपूर्ण हैं, वहीं मानव संसाधन विकास, सूचना-प्रौद्योगिकी, ढांचागत सुविधाओं का निर्माण, स्वच्छ ऊर्जा, शैक्षिक एवं शोध के संस्थानों की स्थापना, कौशल विकास तथा कृषि एजेंडे पर मुख्य बिंदु हैं। भारत का निवेश, जो आज 30 से 35 अरब डॉलर के दायरे में है, बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक ले जाना आर्थिक संबंधों की दृष्टि से अफ्रीका को पुनः भारत से जोड़ सकता है।
अधिकांश अफ्रीकी देश यूरोपीय उपनिवेशवाद और गोरों के नस्लीय भेदभाव के शिकार रहे। वहां अस्थिरता, भ्रष्टाचार, हिंसा तथा एकतंत्रवादी तानाशाही का बोलबाला सामान्य जनता के विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। अधिकांश अफ्रीकी देश ऐसे गणतंत्र हैं, जो किसी न किसी प्रकार की राष्ट्रपति केंद्रित व्यवस्था के अंतर्गत चल रहे हैं। अनेक देशों में विभिन्न नस्ल एवं कबीलों में बंटे गुटों में आपसी हिंसक शत्रुता लगभग युद्ध जैसी स्थिति की निरंतरता बनाए रखती है। पिछले वर्षों में अफ्रीकी देशों में 70 तख्तापलट और ′स्थानीय विद्रोहों′ की घटनाएं हुईं, तथा 13 से अधिक अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों की क्रूर हत्याएं हुईं। अमेरिका और सोवियत संघ के शीतयुद्ध का भी अफ्रीका शिकार रहा। द्वितीय कांगो युद्ध में 50 लाख अफ्रीकी मारे गए, जबकि रवांडा के भयानक नरसंहार में आठ लाख अफ्रीकियों का कत्लेआम हुआ। एड्स जैसी बीमारियां भी वहां फैलीं।
यह परिदृश्य मानवीय दृष्टि से भी अफ्रीकी देशों के प्रति भारत की अधिक बड़ी एवं सार्थक भूमिका की मांग करता है। भारत का अधिकांश ध्यान यूरोप तथा मध्य पूर्व की ओर रहा तथा पिछले दो दशकों से पूर्वी एशिया की ओर भारत की विदेश नीति केंद्रित हुई। अब अफ्रीकी देशों की ओर भारत की दृष्टि और कर्मशीलता का बढ़ना न केवल भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के लिए, बल्कि क्षेत्रीय शक्ति संतुलन और अफ्रीकी देशों की निश्छल सौहार्दपूर्ण भारत नीति के ऋण से उऋण होने का भी विराट प्रयास है। भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है, जिसके स्वर तनावग्रस्त क्षेत्रों में राहत का योग सिद्ध होंगे।
-लेखक भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं
भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन वैश्विक कूटनीति के क्षेत्र में भारत की शक्तिशाली एवं मैत्रीपूर्ण उपस्थिति का नया सरगम है। पहली बार अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों ने भारत के साथ सुरक्षा और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।
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