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Saturday, June 4, 2011

सीमा तीर्थ

15 May, 2011
जनसत्ता

2 comments:

SANDEEP PANWAR said...

चशुल की सच्ची घटना पढकर मेरी आंखों में आंसू आ गये है, वो मंजर सोच कर ही रुह कांप जाती है, कि किस प्रकार वे पचासी फ़ौजी उन डेढ हजार चीनियों से आमने-सामने के युद्द में लडे होंगे, उनमें से एक भी जीवित होता तो मेरे स्वर्गीय फ़ौजी पिता की तरह लडाई के असली पहलू पर रोशनी डालता,
जो दुश्मन के कब्जे में चला गया है उसे भूल जाओ, जो बचा है उसे ही सम्भाल लो, ये भी भूल जाओ कि गांधी के कारण आजादी मिली है, ये आजादी नहीं सत्ता का एक जगह से दूसरी जगह तबादला (हस्तांतरण) था,

अभय मिश्रा said...

siatan singh ki bahaduri ka itna marmik varnan .... aankhe bhar aai... in paramveer chakre sainiko ke bare main , jo khuch bhi sarkari school main padra sab galat sabit hota najar aaya.