Follow me on Twitter

Sunday, January 9, 2011

जनसत्ता

09-January-2011

छब्बीस जनवरी की बारात

तरुण विजय

1 comment:

Anonymous said...

प्रिय तरुण जी,
आपके लेख मई विगत वर्षो से पढ़ रहा हू | आपका यह लेख देश की असली नब्ज़ को झकझोरता है | दुर्भाग्यवश आपका यह लेख पढ़ प्रतिक्रिया करने वाले मूलतः ८० वर्ष की आयु वाले हे होंगे|
आजका युवा तो अपनी मस्ती में मस्त है| दिल्ली और मुंबई के भरे हुए बार और मदमस्त युवाओ को देख कर बस दुःख हे मनाया जा सकता है |
इनमे से यदी कोई निकल कर राजनीती पर तिपानी करता भी है तो बस आसू हे नहीं आते है |

और जो समझता है उसकी कोई कद्र नहीं होती |

मयंक शुक्ल