प्रिय तरुण जी, आपके लेख मई विगत वर्षो से पढ़ रहा हू | आपका यह लेख देश की असली नब्ज़ को झकझोरता है | दुर्भाग्यवश आपका यह लेख पढ़ प्रतिक्रिया करने वाले मूलतः ८० वर्ष की आयु वाले हे होंगे| आजका युवा तो अपनी मस्ती में मस्त है| दिल्ली और मुंबई के भरे हुए बार और मदमस्त युवाओ को देख कर बस दुःख हे मनाया जा सकता है | इनमे से यदी कोई निकल कर राजनीती पर तिपानी करता भी है तो बस आसू हे नहीं आते है |
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प्रिय तरुण जी,
आपके लेख मई विगत वर्षो से पढ़ रहा हू | आपका यह लेख देश की असली नब्ज़ को झकझोरता है | दुर्भाग्यवश आपका यह लेख पढ़ प्रतिक्रिया करने वाले मूलतः ८० वर्ष की आयु वाले हे होंगे|
आजका युवा तो अपनी मस्ती में मस्त है| दिल्ली और मुंबई के भरे हुए बार और मदमस्त युवाओ को देख कर बस दुःख हे मनाया जा सकता है |
इनमे से यदी कोई निकल कर राजनीती पर तिपानी करता भी है तो बस आसू हे नहीं आते है |
और जो समझता है उसकी कोई कद्र नहीं होती |
मयंक शुक्ल
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