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Wednesday, September 21, 2011

सागर पर संप्रभुता--पूर्वी एवं दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में चीन के तीव्रता से बढ़ रहे सामरिक और आर्थिक प्रभाव को रोकने की दिशा में वियतनाम हमारा स्वाभाविक और विश्वसनीय मित्र है


http://www.amarujala.com/Vichaar/VichaarColDetail.aspx?nid=314&tp=b&Secid=40
20th September 2011.
गत पंद्रह से सत्तरह सितंबर तक भारत के विदेश मंत्री एस एम कृष्णा की वियतनाम यात्रा ने चीन की नींद उड़ा दी और यात्रा से ठीक पहले उसने भारत द्वारा दक्षिण चीन सागर में किए जाने वाले तेल तथा गैस अन्वेषण कार्य का विरोध दर्ज कराकर आपसी संबंधों में और गिरावट के संकेत दिए। इससे पहले, जुलाई में वियतनाम की सद्भावना यात्रा पर गए भारतीय नौसेना पोत ऐरावत को चीन की नौसेना ने दक्षिण चीन सागर की सीमा से बाहर जाने को कहा था। भारत ने इस घटना को ज्यादा तूल नहीं दिया, लेकिन सागर की अंतरराष्ट्रीय सीमा में मुक्त आवागमन के अधिकार का हवाला देकर दक्षिण चीन सागर में तेल अन्वेषण के चीनी विरोध को तिरस्कार के साथ खारिज कर दिया।

असल में वियतनाम के साथ चीन की शत्रुता काफी पुरानी है। पहले वियतनाम चीन के नियंत्रण में ही था। 1884 में चीनी सेना फ्रांस से पराजित हो गई और उसके बाद हिंद चीन (कम्बोडिया, लाओस और वियतनाम) पर चीन का आधिपत्य समाप्त हुआ। उसके बाद सोवियत संघ से वियतनाम की मैत्री ने चीन को नाराज कर दिया था। आखिरकार चीन ने फरवरी 1979 में वियतनाम पर हमला बोल दिया। उस समय जनता पार्टी शासन में तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चीन की यात्रा पर थे और इस हमले से नाराज होकर वह यात्रा अधूरी छोड़ देश लौट आए थे। इस युद्ध में चीन के चालीस हजार और वियतनाम के एक लाख से अधिक सैनिक मारे गए थे। चीन की सेना हनोई के निकट तक पहुंच गई थी, हालांकि दो सप्ताह बाद अंतरराष्ट्रीय दबाव में उसे लौटना पड़ा, लेकिन सोवियत संघ के अंत तक दोनों देशों में तनाव बना रहा।

चीन द्वारा वियतनाम के सागर पर भी तेल और गैस के कारण कब्जा जमाने की कोशिशें होती रही हैं। वहां के संपूर्ण दक्षिण चीन सागर पर ही नहीं, बल्कि परसेल्स और स्प्रेतली द्वीपों पर कब्जे के लिए भी चीन वियतनाम से झगड़ा कर रहा है। इन दोनों द्वीपों में काफी मात्रा में तेल और गैस मिलने की संभावनाएं हैं। इसी कारण चीन दक्षिण चीन सागर क्षेत्र से वियतनाम को बाहर करना चाहता है, जबकि संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय सागर सीमा विनियमों के अनुसार इस क्षेत्र पर वियतनाम का नियंत्रण वैध है। ओएनजीसी विदेश लिमिटेड तथा पेट्रो वियतनाम के बीच हुए समझौते के अंतर्गत भारत वहां तेल और गैस अन्वेषण के कार्य में सक्रिय हुआ, तो चीन की चिंता बढ़ गई। वह अब तक वियतनाम को अपने प्रभाव क्षेत्र में मानते हुए यह सहन नहीं कर पाया कि भारत वहां भी अपनी दखल और मैत्री संबंध को मजबूत करे। जो चीन भारत के तीव्र विरोध के बावजूद पकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अपनी सेना की मौजूदगी और अनेक जल विद्युत एवं सड़क निर्माण कार्य करता रहा है, और कराची के पास ग्वादर में बंदरगाह बनाकर भारत की सुरक्षा को सीधी चुनौती दे रहा है, वह अब भारत की गतिशील विदेश नीति की गरमाहट से तपने लगा है। वास्तव में भारत की घरेलू राजनीति के शोर में मनमोहन सिंह की पूर्वी एशियाई विदेश नीति की सफलता का यह महत्वपूर्ण सामरिक संदेश ढक गया। भारत के लिए अब अमेरिका या यूरोप से बढ़कर सामरिक एवं आर्थिक महत्व का क्षेत्र पूर्वी एशिया हो गया है।

यह क्षेत्र गत दस शताब्दियों से भारत की संस्कृति और बुद्ध के उपदेशों से हमारे प्रति सदैव मैत्रीपूर्ण रहा, पर औपनिवेशिक दास मानसिकता के कारण हम केवल पश्चिमी देशों की ओर देखते रहे और उस बीच चीन ने इस क्षेत्र पर प्रभाव विस्तार किया। दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में वियतनाम का बड़ा महत्व है। चीन द्वारा भारत को घेरकर उसे अस्थिर बनाने की कोशिशों का प्रत्युत्तर दक्षिण, दक्षिण-पूर्वी तथा पूर्वी एशियाई देशों के साथ, जिनको चीन ‘अपने प्रभाव के अंतर्गत’ मानता है, पारंपरिक मैत्री संबंध को मजबूत बनाकर ही दिया जा सकता है। गत दस वर्षों में वियतनाम के साथ हमारे आर्थिक संबंध दस गुना से ज्यादा बढ़े हैं, जो अब लगभग तीन अरब डॉलर तक पहुंच गया है। भारत वियतनाम की वायु सेना के चालकों को प्रशिक्षित कर रहा है और गैर परमाणु प्रक्षेपास्त्र देने पर भी विचार कर रहा है। पूर्वी एवं दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में चीन के तीव्रता से बढ़ रहे सामरिक और आर्थिक प्रभाव को रोकने की दिशा में वियतनाम हमारा स्वाभाविक और विश्वसनीय मित्र है।

नवंबर 2000 में भारत ने वियतनाम के साथ गंगा-मेकोंग सहयोग करार पर हस्ताक्षर किया था। तब जसवंत सिंह हमारे विदेश मंत्री थे। उनके साथ मीडिया प्रतिनिधि के नाते मैं भी गया था। वियतनाम में भारत के प्रति जनता में एक सहज और आत्मीय प्रेम दिखता है, विश्व की महाशक्तियों को अपने देशप्रेम की अद्भुत ताकत से हराने वाले देश के प्रति भारत भी अत्यंत सम्मान प्रकट करता है। हमारे विदेश मंत्री ने वियतनाम यात्रा के दौरान रक्षा, व्यापार, शिक्षा, संस्कृति और पूंजी निवेश जैसे विषयों पर चर्चा की। 2011 से 2013 के बीच भारत द्वारा वियतनाम को दी जाने वाली सहायता, तेल और गैस अन्वेषण, रक्षा सहयोग, सेना, नौसेना और वायु सेना के संयुक्त अभ्यास, मीडिया दलों का आदान-प्रदान और ढांचा गत सुविधाओं के विकास पर भी करार हुए। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस क्षेत्र के सामरिक महत्व और चीन की चुनौती के संदर्भ में भारतीय सहयोग की अभी बहुत अधिक संभावनाएं हैं। फिलहाल वियतनाम पहल की सफलता हमारे लिए सार्थक उपलब्धि कही जाएगी।

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