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Sep 06,2009
तरुण विजय
डेढ़ वर्ष पूर्व एक हिंदू युवती रेवती मसूसाई को शरीयत अदालत ने जबरन उसकी बेटी और पति से अलग कर मजहबी सुधार-शिविर में भेज दिया था, क्योंकि रेवती को इस्लामी कानून भंग करने का दोषी पाया गया। वहा किसी भी मुस्लिम को अपना मजहब बदल कर शादी करने पर कानूनी पाबंदी है। अधिकृत तौर पर इस्लामी राज्य मलेशिया पर जैसे-जैसे मध्य-पूर्व और अरब के धन का प्रभाव बढ़ता गया वैसे-वैसे वहा गैर मुस्लिमों के प्रति असहिष्णुता भी बढ़ी है। वहा की गठबंधन सरकार नेशनल फ्रंट में उमनो का वर्चस्व है, जिसमें केवल मुस्लिम ही शामिल हैं। अपने प्रभाव को और बढ़ाने के लिए वह ज्यादा से ज्यादा इस्लामी कट्टरवाद को शासकीय संरक्षण देने की नीति पर चल रहा है। अभी मलेशिया की सुप्रसिद्ध मुस्लिम माडल कर्तिका सारी देवी सुकर्णो को बीयर पीने के जुर्म में सार्वजनिक तौर पर बेंतों से पीटने की सजा सुनाई गई। इस पर सारी दुनिया में हंगामा हो गया तो फिलहाल सजा निलंबित कर दी गई है। उस पर 5000 रिंगलिट का जुर्माना भी किया गया। फिर उसे जेल ले गए, पर वकीलों और महिला अधिकार संगठनों द्वारा शोर मचाने पर घर छोड़ गए। अब मलेशिया सरकार ने सांकेतिक सजा देने की बात कही है।
पूरे विश्व में यदि कोई ऐसा इस्लामी या मुस्लिम बहुल देश ढूंढने निकले, जहा अल्पसंख्यक गैर मुस्लिमों के साथ सामान्य, एक समान और सम्मानजनक कानूनी व्यवहार किया जाता है तो शायद ऐसा एक भी देश ढूंढने में मुश्किल होगी। हो सकता है तुर्की का उदाहरण दिया जाए, पर उसके बारे में कहा जाएगा कि वह यूरोपीय प्रभाव वाला 'गैर इस्लामी' मुस्लिम बहुल देश है। यह परिदृश्य दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया में हिंदू समाज के धार्मिक अधिकारों पर लगातार बढ़ रहे आघातों का एक दु:खद पहलू उजागर करता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में तो हिंदुओं की आवाज भी उठने की गुंजाइश नहीं बची है। नेपाल दुनिया का एकमात्र संवैधानिक हिंदू राष्ट्र था। उसकी वह स्थिति भी समाप्त कर दी गई और हिंदू-हनन को सेकुलर-विजयोत्सव बना दिया गया। मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम बहुल देश, जिनके बारे में कहा जाता था कि वहां का मुस्लिम समाज पढ़ा-लिखा, समृद्ध और आधुनिक है अत: गैर मुस्लिमों के मानवाधिकारों के प्रति सम्यक दृष्टि रखेगा, क्योंकि इन सुशिक्षित मुसलमानों के अनुसार इस्लाम सबके प्रति शांति और भाईचारा सिखाता है, वहा भी हिंदुओं के सामान्य नागरिक एवं धार्मिक अधिकार कुचले जा रहे हैं।
यह विचित्र है कि भारत चुप है। यहा के हिंदू चुप हैं, क्योंकि दुनिया में कहीं भी हिंदुओं के मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाना सेकुलरवाद के खिलाफ है। यहा के वे राजनेता जो कभी तथाकथित तौर पर हिंदू हितों की राजनीति के बल पर अपार सत्ता और ऐश्वर्य का लाभ प्राप्त करते रहे, कहीं भी, कभी भी हिंदू मानवाधिकारों पर बोलते हुए इतना शरमा-शरमा कर भीगे जाते हैं, मानो कोई गलत काम करते पकड़े गए हों। आजकल तो वैसे भी वे आपसी अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। मलेशिया में बेचारे हिंदुओं के दर्द पर बोलने के लिए यहां फुर्सत किसे है? राजनेताओं द्वारा भारत में हिंदुत्व के प्रति छल ने हिंदू समाज के एकत्व और बल को तो क्षीण किया ही है, विश्व भर में हिंदुओं के मनोबल पर भी उसका गंभीर असर पड़ा है। कुछ समय पहले मैं बांग्लादेश की यात्रा पर गया था। वहा के हिंदू नेताओं ने बताया कि बांग्लादेश में हिंदू मानवाधिकारों के हनन पर वहा स्थित अमेरिकी राजदूत आवाज उठाते हैं, पर भारतीय उच्चायोग कभी कुछ नहीं बोलता। पाकिस्तान में ईसाइयों पर तनिक आघात होते ही अमेरिका और यूरोप के राजदूत इस्लामाबाद दौड़े जाते हैं और बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में समाचार और खोजी-फीचर छापकर उनके अधिकारों की रक्षा की जाती है, लेकिन केवल भारत ही ऐसा एकमात्र देश है जहा के बहुसंख्यक हिंदू समाज पर आघात न स्वदेश के समाचार पत्रों में स्थान पाते हैं और न ही शासन या अन्य राजनीतिक दल उस संदर्भ में विचलित होते हैं। ऐसी स्थिति में हिंदू समाज केवल गैर राजनीतिक हिंदू संगठन में ही आशा की किरण खोज सकता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने इस संदर्भ में असंदिग्ध हिंदू एकता पर बल देते हुए गैर राजनीतिक सागठनिक कायरें के विस्तार पर काफी जोर दिया है, जिसे अपने हिंदू धर्म के प्रति संकोच या लज्जाबोध हो या जो राजनीतिक लाभ-अलाभ के तराजू पर हिंदू हितों के संबंध में आवाज उठाने या न उठाने का फैसला करे, उन तत्वों से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। विश्व में बहुलतावाद, लोकतंत्र, अन्य मत के प्रति सम्मान और समान नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए हिंदू जीवन मूल्यों की रक्षा ही एकमात्र उपाय है।
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