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Sunday, May 3, 2009

जल अजल निर्जल

2 comments:

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

तरुण जी आपका ये लेख एक आम भारती, जो अपनी सभ्यता-संस्क्रिति के प्रति सजग है, के मन को झकझोर देता है| आज तो बस सबको "मॉडर्न इंग्लिश मेंन" बनना है| सभ्यता-संस्कृति के बारे में सोचने वाले तो घोर मूर्ख की श्रेणी में आते है| वैसे भी लोगों में अब गंगा जी या संस्कृति से ज्यादा स्रध्धा विदेशी वस्तु, पुस्तक्, स्थान, विचार पर है| अपनी भारती सभ्यता-संस्क्रिति पे ज्यादातार लोग बात भी नहीं करते उन्हें तो मल्टीनेशनल प्रॉडक्ट्स, और मल्टीनेशनल विचार ही भाते है| अब तो हम लोगों को नमस्कार या प्रणाम कहने में भी शर्म महसूस होती है, हाय-हेल्लो बोल कर अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते है| और ये अब नई पीढ़ी में ज्यादा दिखता है क्योंकि आज कल माता पिता बच्च्रे को इंग्लिश स्कूल में भरति कर एक तरह से निस्चिंत हो जते हैं की चलो अब तो मेरा बेटा बड़ा बन जायेगा| ये हमेसा भूल जाते हैं की इंग्लिश स्कूल सिर्फ़ रोजगार परक शिक्शा दे पते है, जो की आज के समय में जरूरी भी है| अपने बच्च्रे को यदि आप किसी सांस्कृतिक संघठन (स्वाध्याय्, इस्क्कोन्, ......) में भागीदार नहीं बनाते तो ये आशा भी मत कीजिये की आपका बच्चा कल को अपनी सभ्यता-संस्क्रिति के प्रति सजग होगा|

यदि हम आने वाली पीढ़ी को स्वछा जल्, वायु देना चाहते हैं तो हमें अपनी सभ्यता-संस्क्रिति के और लौटना ही पडेगा| मल्टीनेशनल कल्चर तो सिर्फ़ प्रकृति के दोहन में ही विश्वास करती है|

IndiaFirst said...

Thanks for article. Ignorance of Hindus towards the points of their own spiritual and rashtriya "Asmita", will leave us nowhere. The pseuda-secularism and media have been brainwashing this great society, increasingly day by day. It is upto common person who is 'aware' of the situation, to take the true light of awareness to his associate countrymen.