Tarun Vijay calls for media introspection
Shri Tarun Vijay was the chief guest at the Silver Jubilee celebrations of Naya Padkar, a largest selling Gujarati regional daily published from Anand City-Gujarat. The grand celebration took place on 12th March 2010. Shri Tarun Vijay landed the successful and courageous Indian language media and appealed media persons to be more honest and objective in their writings. He cited media silence on Kashmiri Hindus plight, Bareilly riots and Godhra as examples of so called secular media’s prejudiced behavior.
Here are some pics of the programme.
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समाचार चैनलों द्वारा किए जा रहे महत्वपूर्ण कार्यों का लेखाजोखा
• शुवह-शुवह भगवान को याद करने के वजाए अपने विरोधियों को गाली-गलौच करना।
• किसी एक अपवाद को उठाकर धर्म और संस्कृति को बदनाम करना।
• ईसाईयत और इस्लाम को आगे बढ़ाने के लिए हिन्दूओं की ऋणात्मक छवी प्रसतुत करना।
• फिल्मों के हर उस सीन को दिखाना जो एडलट सर्टीफिकेट की जरूरत रखता है।
• अपने उपर समाचार चैनल का फटा लगाकर मंनोरंजन कर से बचना।
• किसी क्षेत्र की छोटी सी घटना को उठाकर सारे देश में दंगा भड़काने की कोशिस करना।
• हर घटना को सांप्रदायिक रंग देना।
• हर घटना का जातिकरण करना।
• भाई-बहन-माता-पिता-पति-पत्नि जैसे पवित्र रिस्तों को बदनाम करना।क्योंकि ये रिस्ते इनके आकाओं के सांप्रदायों में EXIST ही नहीं करते हैं। ऐसा नहीं कि उन सांप्रदायों में ये रिस्ते होते ही नहीं पर इन सांप्रदायों में इन रिस्तों का महत्व और पालन बैसी दृढ़ता से नहीं होता जैसे भारतीय समाज करते हैं। मां के पवित्र रिस्ते की रक्षा के लिए मां के बच्चे व उन बच्चों का पिता अपनी जान तक कुर्वान करने के लिए ततपर रहते हैं ।जिन सांप्रदायों के हाथों ये समाचार चैनल विके हुए हैं उन साम्रदायों में मां को नहीं पता कि कब उसके बच्चों का पिता उसका परित्याग कर दे और पिर बच्चों को ये भी नहीं पता कि कब मां बदल जाए कई वार तो बच्चों को ये तक नहीं पता होता कि उनका प्राकृतिक वाप है कौन ।यही बजह है कि इन सांप्रदायों को मानने वाले लोग जिस भी देश में हैं वहां हिंसा, आतंकवाद, ब्याभिचार का वोललाला है आखिर वो बच्चे आतंकवादी बनने के सिवा और बन भी क्या सकते हैं जिन्हें अपने मां-वाप की जानकारी नहीं इन सांप्रदायों में लगभग वही स्थिति पायी जाती है जो पशुओं में पायी जाती है। मिडीया को सायद ये सांप्रदाये इसीलिए प्रिय हैं क्योंकि मिडीया से जुड़े लोगों को इन सांप्रदायों में अपना बयक्तिगत प्रतिविंव दिखता है सायद इसी रिस्ते को देखकर कहा गया है चोर-चोर मौसेरे भाई।
हमारे विचार में भारत को बचाने के लिए मिडीया पर प्रतिबन्ध एकमात्र उपाए बचा है क्योंकि ये विका हुआ मिडीया सुधरे ऐसी कोई उमीद नहीं
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